फनी बाल कविता : उठो-उठो

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
सुबह-सुबह तोताजी बोले,
उठो-उठो गुड मार्निंग जी।
आज बने हैं आलू छोले,
उठो-उठो गुड‌ मार्निंग जी‍।

भोर, स्वर्ण की थाली लेकर,
द्वार तुम्हारे आई थी।
किंतु तुम्हें जब सोता पाया
मन ही मन मुस्काई थी।
ठंडी हवा रजाई टटोले,
उठो-उठो गुड‌ मार्निंग जी‍।

चाय पुकारे जोर-जोर से,
मैं कब से तैयार खडी।
वहीं पराठों वाली थाली,
एक टांग पर अड़ी पड़ी।
चीख रहे हैं रस के गोले,
उठो-उठो गुड‌ मार्निंग जी‍।

सुबह सुबह ही सोन चिरैया,
तुम्हें जगाने आई थी।
जागो-जागो हुआ सबेरा,
चें चें चें चिल्लाई थी।
कानों में अमृत रस घोले,
उठो-उठो गुड‌ मार्निंग जी‍।

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