बाल कविता : चश्मा घर‌

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चश्मा घर से निकला चश्मा,
दौड़ लगाकर आता।
कूद-कूद कर बाबूजी के,
कानों पर चढ़ जाता।

फिर धीरे से उतर-उतर कर,
आंखों पर छा जाता।
और अंत में नाक पकड़ कर,
वहीं टिका रह जाता।

जब थक जाते बाबूजी तो,
तुरंत कूद कर आता।
बिना किसी की पूंछताछ,
चश्मा घर में घुस जाता।
Show comments

दादी-नानी की भोजन की ये 8 आदतें सेहत के लिए हैं बहुत लाभकारी

ये है सनबर्न का अचूक आयुर्वेदिक इलाज

गर्मियों में ट्राई करें ये 5 लिपस्टिक शेड्स, हर इंडियन स्किन टोन पर लगेंगे खूबसूरत

गर्मियों में हाथों को खूबसूरत बनाएंगे ये 5 तरह के नेल आर्ट

आखिर भारत कैसे बना धार्मिक अल्पसंख्यकों का सुरक्षित ठिकाना

कैसे बनाएं बीटरूट का स्वादिष्ट चीला, नोट करें रेसिपी

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

घर में बनाएं केमिकल फ्री ब्लश

बच्चे के शरीर में है पोषक तत्वों की कमी अपनाएं ये 3 टिप्स

सुकून की नींद लेने के लिए कपल्‍स अपना रहे हैं स्‍लीप डिवोर्स ट्रेंड