बाल कविता : चूहे की लात‌

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
एक शेर को चूहेजी ने,
कसकर मारी लात।
शेर सिंहजी गिरे उलटकर,
टूटे सारे दांत।

बोला चूहा बीच सड़क पर,
क्यों चलते हो भाई।
मुझसे पंगा लेने आए,
तुम्हें लाज न आई।

अगर सड़क पर कभी दुबारा,
मुझको पड़े दिखाई।
कर दूंगा तब ठोक पीटकर,
रुई की तरह धुनाई।

धूल झाड़कर उठे शेरजी,
रोते-गाते आए।
माफी मांगी मूषकजी से,
उनके चरण दबाए।
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