बाल कविता : ठीक नहीं है मूर्ख बनाना

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चुहिया रानी रंग-बिरंगी, 
स्वेटर बुनकर लाई। 
बड़े प्रेम से अपने भाई, 
चूहे को पहनाई। 
 

 
 


वह भी निकली बड़ी शान से, 
सिर पर ओढ़ रजाई। 
उन्हें समझकर कोई एलियन, 
बिल्ली तक घबराई। 
 
चूहा-चुहिया दोनों ने ही, 
पथ पर धूम मचाई। 
दौड़ लगाकर डर के मारे,
भागे कुत्ताभाई। 
 
तभी छछूंदर काकाजी ने, 
समझी यह चतुराई। 
चूहे की स्वेटर व चुहिया की,
वह रजाई हटाई।
 
पकड़े गए चूहे-चुहियाजी, 
प्रकट हुई सच्चाई। 
फिर दोनों की खूब धमाधम, 
कसकर हुई पिटाई। 
 
धोखा देना मूर्ख बनाना, 
ठीक नहीं है भाई। 
ऐसे लोगों की आखिर में, 
होती जगत हंसाई।
 
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