बाल कविता : बारिश आई है...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
सोमवार, 30 जून 2014 (17:11 IST)
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खेलें-कूदें धूम मचाएं,
बारिश आई है।
अखबारों की नाव चलाएं,
बारिश आई है।

अम्मा कहतीं बच्चों कपड़े,
गीले मत करना।
नंगे होकर चलो नहाएं,
बारिश आई है।

आसमान की ओर उठाकर,
अपना मुंह रखना।
बूंदें मुखड़े पर टकराएं,
बारिश आई है।

आंगन में भर जाए पानी,
घुटनों-घुटनों तक।
ईश्वर से यह दुआ मनाएं,
बारिश आई है।

पानी में खेलेंगे छप-छप,
थोड़ा तैरेंगे,
घोर-घोर रानी भी गाएं,
बारिश आई है।

बारिश के मौसम में पापा,
खाते हैं भजिए।
अम्मा शायद गरम बनाएं,
बारिश आई है

चाट बाजार की मत खाना,
दादी कहती हैं।
खाना खूब चबाकर खाएं,
बारिश आई है।
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