बाल कविता : रिक्शा चालक

Webdunia
- रवि श्रीवास्तव
 

 
पता नहीं क्यों लोग मुझे,
घृणा की नजर से देखते हैं
 
गाली की बौछार के साथ
हम पर हाथ सेंकते हैं
 
ताने सबके मुझको सुनना
पुलिस का भी डंडा सहना
 
जिसको देखो देता धक्का
बोलने पर मिलता है मुक्का
 
बिना भेद-भाव के सैर कराता
सबको मंजिल तक पहुंचाता
 
सड़क पर चलना मुश्किल मेरा
कहा जाएं अब लेकर डेरा
 
दिन भर करता मेहनत पूरी
तब जाकर मिलती मजदूरी
 
आखिर मेरा क्या है कसूर
आदमी हूं इतना मजबूर
 
इतना सब सह करके
परिवार का पेट पालता हूं
 
इस बेरहम दुनिया में
रिक्शा चालक कहलाता हूं। 
 
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