बालगीत : जादू की पुड़िया

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
गुड्डा राजा भोपाली हैं,
गुड़िया शुद्ध जबलपुरिया।


 
गुड्डा को पापा लाए थे,
भोजपाल के मेले से।
गुड़िया आई जबलपुर के,
सदर गंज के ठेले से।
 
गुड्डा को आती बंगाली,
गुड़िया को भाषा उड़िया।
 
गुड्डा खाता रसगुल्ले है,
गुड़िया को डोसा भाते।
दही बड़े जब बनते घर में,
दोनों ही मिलकर खाते।
 
दोनों को ही अच्छी लगती,
मां के हाथों की गुझिया।
 
गुड्डा को इमली भाती है,
गुड़िया को हैं आम पसंद,
मां के हाथों के खाने में,
दोनों को आता आनंद।
 
दोनों कहते मां के हाथों,
में है जादू की पुड़िया। 
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