बहुत दिनों के बाद ठसक कर,
पूंछ मूंछ से बोली।
शर्म नहीं आती करते हो,
मुझसे रोज ठिठोली।
मुंह को पीछे मोड़-मोड़कर,
मूंछें दिखलाते हो।
मैं हूं कोमल पूंछ,
मूंछ क्यों मुझसे टकराते हो।
मेरी सुंदर कोमल काया,
इन्हें नहीं सह पाती।
मूंछ तुम्हारी बहुत नुकीली,
कांटे सी चुभ जाती।
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