आखिर पर्वत क्या होते हैं,
चट्टानों मिटटी के लौंदे।
कई टोकने रखे गए हों,
तिरछे आड़े,औंधे-औंधे।
पेड़ लगे रहते पर्वत पर,
फैली रहती है हरियाली।
दिखते कहीं निकुंज घने से,
कहीं जगह होती है खाली।
कहीं मकोई दिखती फूली,
हंसते दिखते कहीं करोंदे।
पेड़ लगे होने से होता,
जल बहाव में बड़ा नियंत्रण।
पेड़ न हों तो जल की धारा,
करती तहस नहस जन जीवन।
कटते जाते ढेर पेड़ क्यों ?
प्रश्न आज फिर मन में कौंधे।
पेड़ों की डालों कोटर में,
पंछी अपने नीड़ बनाते।
हंसते-हंसते सारा जीवन,
मस्ती में वे यहीं बिताते।
यहीं कहीं हिंसक पशुओं के,
भी होते हैं बने घरोंदे।
पर्वत पेड़ों की रखवाली,
नहीं रहा क्या धर्म हमारा !
हमने बंगले महल बनाये,
पर्वत जंगल छांटा सारा।
पेड़ बचने की मुहीम में,
सिद्ध हुए सब पंडित, पोंगे।
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