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बाल गीत: बड़ी चकल्लस है

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

, सोमवार, 19 मई 2025 (14:23 IST)
रोज-रोज का खाना खाना,
बड़ी चकल्लस है।
 
दादी दाल-भात रख देती,
करती फतवा जारी।
तुम्हें पड़ेगा पूरा खाना
नहीं चले मक्कारी।
दादी का यह पोता देखो,
कैसा परवश है।
बड़ी चकल्लस है।
 
भूख नहीं रहती है फिर भी,
कहती खालो-खालो।
मैं कहता हूं घुसो पेट में,
जाकर पता लगा लो।
तुम्हें मिलेगा पेट लबालब,
भरा ठसाठस है।
बड़ी चकल्लस है।
 
पिज्जा बर्गर देती दादी,
तो शायद खा लेता।
चाऊमीन मिल जाते तो मैं,
पेट बड़ा कर लेता।
वैसे भी अब दाल भात में,
कहां बचा रस है।
बड़ी चकल्लस है।
 
पर दादी कहतीं हैं बेटे,
कभी भूल मत जाना।
सारे जग में सबसे अच्छा,
हिन्दुस्तानी खाना।
यहां रोटियां किशमिश जैसी,
सब्जी आमरस है।
बड़ी चकल्लस है।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
 

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