नटखट कविता : रेल चली भई रेल चली

कृष्ण वल्लभ पौराणिक
रेल चली भई
रेल चली
छुक छुक छुक छुक
रेल चली
बिन पटरी के
दौड़ चली
छुक छुक छुक छुक
रेल चली
रेल चली भई
रेल चली ...1

इंजिन गोलू
औ' डिब्बे हैं
रामू श्यामू
कालू मामू
लालू राधू
दौड़ रहे हैं
पूंछ पकड़ के
बिना धुएं के
दौड़ चली
रेल चली भई
रेल चली ...2
 
सीधी चलती
दाएं-बाएं
मुड़कर चलती
शोर मचाती
सीटी देती
स्टेशन पर
रुकती जाती
लहराती यह
रेल चली
रेल चली भई
रेल चली ...3
 
यात्री इसमें
नहीं बैठते
वे खुद डिब्बे
बन जाते हैं
स्टेशन के आ जाने पर
हट जाते कुछ
और नए कुछ
जुड़ जाते हैं।
बच्चों की यह
रेल चली
रेल चली भई
रेल चली ...4
 
छुक छुक छुक छुक
रेल चली
बिन पटरी के
दौड़ चली
रेल चली भई
रेल चली ...5 

 
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