बाल कविता : चिड़िया

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- महेश साकल्ये
 
चिड़िया फुर्र-फुर्र उड़ती है,
हाथ लगाओ डरती है।
चीं-चीं करती जाती है,
हाथ किसी के ना आती है।
सबको प्यारी लगती है,
पंछियों में न्यारी लगती है।
चोंच से दाने चुगती है,
बड़ी सुंदर, मोहक लगती है।
 

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