हिन्दी कविता : जीता रहूंगा...

सुशील कुमार शर्मा
क्या हुआ सब जा चुके हैं
बच्चे अपना घर बना चुके हैं
जीवन के इस सफर में
अकेला हूं अपने घर में
जीवन के इस उपवन में
खिलता रहूंगा, खिलता रहूंगा।
 
जीवन में सब कुछ पाया
छोड़कर सब मोह-माया
अपने अनुभवों की कीमत
नहीं रखूंगा खुद तक सीमित
मानवता के हितार्थ काम
करता रहूंगा करता रहूंगा।
 
सांसों की गिनती कम हो रही है
मृत्यु जीवन की ओर बढ़ रही है
सभी अपने पराये से लग रहे हैं
दिन में सोए पल रात में जग रहे हैं
जितने भी पल बचे हैं जिंदगी के
जीता रहूंगा जीता रहूंगा।
 
बुढ़ापा नैराश्य का पर्याय नहीं है
जीवन इतना असहाय नहीं है
माना कि तन मजबूर है
माना कि मंजिल दूर है
फिर भी बिना किसी के सहारे
चलता रहूंगा, चलता रहूंगा।
 
हे ईश्वर बोझ न बनूं किसी पर
रहूं अपने सहारे इस जमीं पर
किंचित अभिमान न रहे मन में
स्वाभिमान जिंदा रहे इस तन में
अंतिम समय ये मुख तेरा ही नाम
रटता रहे, रटता रहे।
 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विवाह के बाद गृह प्रवेश के दौरान नई दुल्हन पैर से क्यों गिराती है चावल से भरा कलश? जानिए क्या है इस रस्म के पीछे का कारण

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डॉक्टर्स और एक्सपर्ट

Winter Fashion : सर्दियों में परफेक्ट लुक के लिए इस तरह करें ओवरसाइज्ड कपड़ों को स्टाइल

सभी देखें

नवीनतम

America: भारतीय अमेरिकियों ने किया कनाडा और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के खिलाफ प्रदर्शन

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

अगला लेख