बाल गीत : जीत के परचम...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मन को लुभा रहे हैं, 
ये फूल गुलमोहर के।
 
ये लाल-लाल लुच-लुच, 
डालों पे डोलते हैं।
कुछ ध्यान से सुनो तो, 
शायद ये बोलते हैं।
सब लोग इन्हें देखें, 
रुक-रुक, ठहर-ठहर के। 
 
चुन्ना ने एक अंगुली, 
उस ओर है उठाई। 
देखा जो गुलमोहर तो, 
चिन्नी भी खिलखिलाई। 
मस्ती में धूल चूमें, 
नीचे बिखर-बिखर के।
 
हंसते हैं मुस्कुराते, 
ये सूर्य को चिढ़ाते।
आनंद का अंगूठा, 
ये धूप को दिखाते।
हैं जीत के ये परचम, 
उड़ते फहर-फहर के।
 
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