हिन्दी कविता : मुस्काए शाला के आंगन...

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-  हरीश दुबे
 
देख-देख बच्चे मनभावन
मुस्काए शाला के आंगन
 
भोली-भाली हंसी फूल-सी
जैसे महका-महका उपवन
 
मीठे-मीठे शब्द झरे यूं
रिमझिम जैसे बरसे सावन
 
एक से सबने कपड़े पहने
एक ही रहना कहते गुरुजन
 
माटी भी जिसकी चंदन है
ऐसा अपना देश है पावन। 

साभार- देवपुत्र

 
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