कविता : मैं गीत एक नया गाता हूं

राकेशधर द्विवेदी
मैं गीत एक नया गाता हूं
तुमको बदलाव दिखाता हूं


 
हर शोषित-पीड़ित के पक्ष में
कुछ नगमे नए सुनाता हूं
 
मैं क्रांति गीत को गाता हूं
इस देश की माटी माथे से लगाता हूं
किसान मजदूरों के हक में
जोर से आवाज लगाता हूं
 
मैं धूमिल की आवाज हूं
मैं निराला के काव्य का पाठ हूं
मैं मुक्तिबोध की रचनाधर्मिता हूं
मैं दलित-शोषित-वंचित की आवाज हूं
 
जब दमन-शोषण का चक्र चलेगा
मैं भगतसिंह बन जाऊंगा
जब लोकतंत्र से लोक हटेगा
मैं जयप्रकाश बन जाऊंगा
 
मैं बापू का आंदोलन हूं
मैं सुभाष का सत्साहस हूं
मैं हर एक भारतीय के पक्ष में 
बजने वाले गीतों का मैं गायक हूं
 
जब धरती पर घुप्प अंधेरा होगा
मैं दिनकर बन जाऊंगा
जब निर्धन-पीड़ित का दिल रोएगा
मैं गोरख पांडेय बन जाऊंगा
 
हर शोषित और पीड़ित भारतीय के
मुख की मैं वाणी हूं
मैं भारत के बदलाव की
लिखता नई कहानी हूं। 
 
 
 
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