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बाल दिवस पर कविता : खुद सूरज बन जाओ न

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,
फुरर-फुरर कर कहां चली।
दादी अम्मा जहां सुखातीं,
छत पर बैठीं मूंगफली।
 
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,
मूंग फली कैसी होती।
मूंग फली होती है जैसे,
लाल रंग का हो मोती।
 
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,
मोती मुझे खिलाओ न।
बगुला भगत बने क्यों रहते,
बनकर हंस दिखाओ न।
 
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,
हंस कहां पर रहते हैं।
काम भलाई के जो करते,
हंस उन्हीं को कहते हैं।
 
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,
भले काम कैसे करते।
सूरज भैया धूप भेजकर,
जैसे अंधियारा हरते।
 
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,
सूरज से मिलवाओ न।
अपना ज्ञान बांटकर सबको,
खुद सूरज बन जाओ न।


(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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