सूरज करता चम-चम-चम-चम,
पानी झिलमिल करता।
सरिता जल में सुबह नहाने,
सूरज रोज उतरता।
रगड़-रगड़ कर अपने तन का सारा मैल छूटाता।
इसी मैल से रंग पानी का,
लाल-लाल हो जाता।
किरणों के घोड़े पर चढ़कर धूप धरा पर आती।
सोती, ऊंघ रही कलियों को,
हाथों से दुलराती।
पाकर छुअन धूप की, कलियां,
हौले से मुस्कतीं।
बन जाती हैं फूल, हवा से,
हंसकर के बतियातीं।
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