बाल कविता : टेढ़ा आंगन...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मार-मारकर लगा नचाने
पर भालू न नाचा,


 
जड़ा मदारी ने गुस्से से
उसके गाल तमाचा।
 
भालू बोला नाच नहीं है
होता लड्डू-पेड़ा,
नहीं देखते यह आंगन है
कितना टेढ़ा-मेढ़ा।
 
हंसा मदारी, बोला बच्चू
क्यों यह व्यर्थ बखेड़ा,
नाच जिन्हें न आता वे ही,
कहते आंगन टेढ़ा।
 
 
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