बाल साहित्य : चलने वाले घर

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
पता नहीं चलने वाले घर,
अब क्यों नहीं बनाते लोग। 


 
बांध के रस्सी खींच क्यों नहीं,
इधर-उधर ले जाते लोग।
 
कभी आगरा कभी बॉम्बे,
दिल्ली नहीं घुमाते लोग। 
एक जगह स्थिर हैं घर क्यों,
पहिया नहीं लगते लोग। 
 
पता नहीं क्यों कारों जैसे,
सड़कों पर ले जाते लोग। 
पता नहीं मोटर रिक्शों-सा,
घर को नहीं चलाते लोग। 
 
पता नहीं घर स्थिर क्यों हैं,
बिलकुल नहीं हिलाते लोग। 
कुत्तों जैसे बांध के पट्टा,
क्यों ना अब टहलाते लोग। 
 
कब से भूखे खड़े हुए घर,
खाना नहीं खिलाते लोग। 
नंगे हैं बचपन से अब तक,
कपड़े नहीं सिलाते लोग। 
 
एक-दूसरे को आपस में,
कभी नहीं मिलवाते लोग। 
मिल ना सकें कभी घर से घर,
यही गणित बैठाते लोग।
 
ऊंच-नीच कमजोर-बड़ों को,
जब चाहा उलझाते लोग। 
जाति-धर्म के नाम घरों को,
आपस में लड़वाते लोग। 
 
Show comments

ग्लोइंग स्किन के लिए चेहरे पर लगाएं चंदन और मुल्तानी मिट्टी का उबटन

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

क्या आपका बच्चा भी चूसता है अंगूठा तो हो सकती है ये 3 समस्याएं