बाल कविता : आना हो गौरेया...

डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
आना हो गौरेया आना, आना मोरे आंगना
भोर के वो उत्सव रोज के मनाना 


 

ओ री गौरेया मैं, जानूं तोरा रूठना 
अब तो मनाऊं आ जा, आ जा मोरी सगुना 
आ जा चहक सुना, लाल को जगाना 
भोर के वो उत्सव...
 
हमने जुलुम किए, बगिया कटाय के 
अपने महल बना, बिरछा कटाय के 
अब तो लगाऊं, तोरे लिए मीठे जामुना 
भोर के वो उत्सव...
 
डालूं मुट्ठी भर दाने, पानी भी पिवाऊंगी 
आटा की गोली धरूं, चांउर जीवाऊंगी 
झुंड-झुंड चूं-चूं, रागिनी सुनाना 
भोर के वो उत्सव...
 
तेरे नन्हे लाड़लों को, दूर से ही देखूंगी 
चोंच में दाना खिला, नाहीं तोहे टोकूंगी 
चोंच से चोंच मिला, प्रेम सरसाना 
भोर के वो उत्सव..। 
 
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