बालगीत : मेरी छोटी सी गुड़िया

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मेरी गुड़िया का छोटा सा,
चिड़ियों जैसा पेट।
 

 
रोटी एक कभी खाती है,
कभी-कभी तो आधी।
दादी जब देती तो कहती,
ना, ना अब न दादी।
 
साफ मना कर देती सबको,
बिन ही लाग-लपेट।
 
कहती, खाने को ना जीती,
खाती हूं जीने को।
उसकी टीचर ने बोला है,
गुस्सा गम पीने को।
 
सुबह पांच पर उठ जाती है,
रात दस बजे लेट।
 
नहीं किसी झगड़े-झंझट में,
पाठ नियम से पढ़ती।
कर्म करो तो फल मिलता है,
कहकर खूब चहकती।
 
चिड़िया हैं सब रामलला की,
रामलला के खेत।

 
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