बच्चों की मनपसंद कविता : खेल...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
नहीं आजकल उसको,
और कुछ सुहाता है।
खेल उसे बच्चों के,
साथ बहुत भाता है।
 
न उसे कबड्डी ही,
खो-खो ही आती है।
पिट्ठू पर बार-बार,
गेंद चूक जाती है।
 
हार-हार बच्चों से,
खूब मार खाता है
खेल उसे बच्चों के,
साथ बहुत भाता है।
 
ढोलक न, तबला न,
बांसुरी बजा पाता।
गीत-गजल-कविता न,
लोरी ही गा पाता।
 
चिड़ियों की चें-चें में,
खूब मजा आता है।
खेल उसे बच्चों के,
साथ बहुत भाता है।
 
नहीं भजन संध्या से,
फिल्मों से है नाता।
संतों की बात कभी,
सुनने भी न जाता।
 
भूखों को, प्यासों को,
अन्न-जल दे आता है।
खेल उसे बच्चों के,
साथ बहुत भाता है। 
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