हिन्दी कविता : जब तक जग में मांएं हैं

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
वे रखते ईर्ष्याएं हैं, 
मेरे पास दुआएं हैं। 


 
तुमने लिखे व्यंग्य ढेरों,
हमने तो कविताएं हैं। 
 
धमनी होगी, होगी ही,
जिनके पास शिराएं हैं। 
 
उन्हें कहानी भाती है,
हमको लोककथाएं हैं। 
 
सिर पर वरदहस्त होगा,
जब तक जग में मांएं हैं
 
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