हिन्दी कविता : अजब पिटारी है...

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- राजेन्द्र निशेश
 
पतझड़ की हो गई बिदाई,
अब बसंत की बारी है।
 
फूल खिल रहे महके-महके,
मयूर, कोयल सब हैं चहके।
चिड़िया फुदके टहनी-टहनी,
कैसी हंसती क्यारी है।
 
भंवरों में है मस्ती छाई,
शीतल चलती है पुरवाई।
धरती ने भी प्यार लुटाया,
तितली कैसी न्यारी है।
 
सूरज मंद-मंद मुस्काता,
चंदा अपने रूप दिखाता।
तारे सुन्दर गीत सुनाते, 
कुदरत अजब पिटारी है। 

साभार - देवपुत्र 
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