बाल साहित्य : गप्पी...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
सुबह-सुबह से उठे रामजी,
पर्वत एक उठा लाए।


 
नदी पड़ी थी बीच सड़क पर,
उसे जेब में भर लाए।
 
फिर खजूर के एक पेड़ पर,
हाथीजी को चढ़वाया।
तीन गधों को तीन चींटियों,
से आपस में लड़वाया।
 
पानीपत के घोर समर में,
गधे हारकर घर भागे।
किंतु चींटियों ने पकड़ा,
तो हाथ-पैर कसकर बांधे।
 
अपने इसी गधेपन से ही,
गधे, गधे कहलाते हैं।
डील-डौल इतना भारी पर,
चींटी से डर जाते हैं।
 
पूछा- गप्पी इन बातों में,
क्या कुछ भी सच्चाई है।
बोले गप्पी मुझको तो,
बाबा ने बात बताई है।
 
बाबा के बाबा को भी तो,
उनके बाबा ने बोला।
इसी बात को सब पुरखों ने,
सबके कानों में घोला।
 
बाबा के बाबा के बाबा,
पक्के हिन्दुस्तानी थे।
झूठ बोलना कभी न सीखा,
वे सच के अनुगामी थे।
 
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