बाल साहित्य : मेरे ईश्वर

अंशुमन दुबे (बाल कवि)
प्रभु! लोभ, स्वार्थ का क्या तात्पर्य है?
प्रभु बोले- 'इस पर मेरा यह उत्तर है,
लोभ सारी वि‍पत्तियों की जड़ है,
स्वार्थ दुर्गुणों का जैसे कीचड़ है।'
 

 
सुख अनेक प्रकार के, भौतिक सुख बताता हूं,
सबसे बड़ा सुख है निरोगी काया।
दूसरा मां-बाप का प्यार पाया,
तीसरा सदाचारी मन व अंत में माया।
 
प्रभु! मेहनत करूं या भक्ति?
किसमें है सबसे अधिक शक्ति?
'जिन्हें मैंने बनाया उनके लिए मेहनत कर,
यही है सबसे बड़ी भक्ति।'
 
प्रभु! भटक रहा था अज्ञान के अंधकार में,
उजाला तुमने दिल खोल दिया।
मैं तो कुछ भी न था जब,
तुमने छूकर मुझे अनमोल किया।
 
मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है,
आपको क्या अर्पण कर सकता हूं।
मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूं,
मात्र हाथ जोड़कर नमन कर सकता हूं।

साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह) 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सर्दियों में बहुत गुणकारी है इन हरे पत्तों की चटनी, सेहत को मिलेंगे बेजोड़ फायदे

2024 में ऑनलाइन डेटिंग का जलवा : जानें कौन से ऐप्स और ट्रेंड्स रहे हिट

ये थे साल 2024 के फेमस डेटिंग टर्म्स : जानिए किस तरह बदली रिश्तों की परिभाषा

सर्दियों में इन 4 अंगों पर लगाएं घी, सेहत को मिलेंगे गजब के फायदे

सर्दियों में पानी में उबालकर पिएं ये एक चीज, सेहत के लिए है वरदान

सभी देखें

नवीनतम

क्या होता है फेक पनीर, कहीं आप भी तो नहीं खा रहे नकली पनीर?

कॉफी लवर हैं तो कॉफी में इस चीज को मिलाकर पिएं, मिलेगा सेहत और स्वाद का बेहतरीन कॉम्बो

Workout Tips : वर्कआउट के दौरान डिहाइड्रेशन से बचाएगा ये सुपरफूड, जानिए कैसे

एगलेस चॉकलेट स्टार क्रिसमस केक कैसे बनाएं, अभी नोट करें रेसिपी

कवयित्री गगन गिल को ‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए साहित्‍य अकादमी सम्‍मान