दिवाली पर कविता : कुंभकार

Webdunia
शनिवार, 18 अक्टूबर 2014 (10:54 IST)
- डॉ. कैलाश सुमन
 

 
दिनभर माटी में रहता है,
माटी से ‍बतियाता।
कुंदन जैसा तपा-तपाकर,
सुंदर कुम्भ बनाता।।
 
कभी बनाता टेसू झंझी,
डबुआ दीप सरइया,
कभी भव्य प्रतिमा देवी की,
राधा संग कन्हैया।।
 
भिन्न-भिन्न आकृतियां देता,
सुंदर उन्हें सजाता।
गोल-गोल धरती सी प्यारी,
गोलक सुघड़ बनाता।।
 
पौ फटने से सांझ ढले तक,
दिनभर चाक घुमाता।
इतनी मेहनत करने पर भी,
पेट नहीं भर पाता।।
 
बिजली और मोम के दीपक,
छीन रहे हैं रोटी।
थर्माकॉल छीनता उसके,
तन पर बची लंगोटी।।
 
बिके खेत-खलिहान बिक गए,
गदहा और मढैया
कुंभकार का चैन छिन गया,
दिन में दिखी तरैया।।
 
करे तिमिर का नाश द्वार पर,
जब-जब दीप जलेंगे।
कुम्भकार के घर खुशियों के,
लाखों फूल खिलेंगे।।
 
मत भूलो मिट्टी को बच्चो!
इसका त्याग न करना।
मिट्टी से ही जन्म हुआ है,
मिट्टी में ही मरना।।

साभार- देवपुत्र 
Show comments

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमनें तो इन 6 बातों का रखें ध्यान

गर्मियों में पीरियड्स के दौरान इन 5 हाइजीन टिप्स का रखें ध्यान

मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित करती है आयरन की कमी, जानें इसके लक्षण

सिर्फ 10 रुपए में हटाएं आंखों के नीचे से डार्क सर्कल, जानें 5 आसान टिप्स

कच्चे आम का खट्टापन सेहत के लिए है बहुत फायदेमंद, जानें 10 फायदे

मंगल ग्रह पर जीवन रहे होने के कई संकेत मिले

महिलाओं को पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते वक्त नहीं करना चाहिए ये 10 गलतियां

Guru Tegh Bahadur: गुरु तेग बहादुर सिंह की जयंती, जानें उनका जीवन और 10 प्रेरक विचार

मातृ दिवस पर कविता : जीवन के फूलों में खुशबू का वास है 'मां'

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमनें तो इन 6 बातों का रखें ध्यान