फनी कविता : बुड्ढी के बाल

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेकर आया लल्लू लाल,
लाल-लाल बुड्ढी के बाल।
 

 
हरे गुलाबी पीले भी हैं
श्वेत बैंगनी नीले भी हैं,
सजे-धजे बैठे डिब्बे में
साफ और चमकीले भी हैं।
 
इतने सारे रंग सामने
बच्चे देख हुए खुशहाल,
लाल-लाल बुड्ढी के बाल।
 
मुन्नी ने पीला खुलवाया
छुन्नी को तो हरा सुहाया,
चुन्नू बोला नीला लूंगा
राम गुलाबी पर ललचाया,
कल्लूजी ने लाल चबाया
ओंठ हो गए लाल गुलाल,
लाल-लाल बुड्ढी के बाल।
 
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