बाल कविता : सूरज दादा परेशान हैं...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
सूरज दादा परेशान हैं, गरमी से राहत पहुंचाएं।
आसमान में जाकर उनको, काला चश्मा पहना आएं।।

यह तो सोचो कड़ी धूप में, नंगे पांव चले आते हैं।
अंगारे से जलते रहते, फिर भी हंसते-मुस्कराते हैं।।

किसी तरह भी पहुंचें उन तक, ठंडा पेय पिलाकर आएं।
सूरज दादा परेशान हैं, गरमी से राहत पहुंचाएं।।

सुबह-सुबह तो ठंडे रहते, पर दोपहर में आग उगलते।
सभी ग्रहों के पितृ पुरुष हैं, जग हित में स्वयं जलते रहते।।

कुछ तो राहत मिल जाएगी, चलो उन्हें नहलाकर आएं।
सूरज दादा परेशान हैं, गरमी से राहत पहुंचाएं।।

दादा के कारण धरती पर, गरमी सर्दी वर्षा आती।
उनकी गरमी से ही बदली, धरती पर पानी बरसाती।।

चलो चलें अंबर में चलकर, उनको एक छाता दे आएं।
सूरज दादा परेशान हैं, गरमी से राहत पहुंचाएं।।

बड़ी भोर से सांझ ढले तक, हर दिन कसकर दौड़ लगाते।
नहीं किसी से व्यथा बताते, पता नहीं कितने थक जाते।।

धरती के सब बच्चे चलकर, क्यों न उनके पैर दबाएं।
सूरज दादा परेशान हैं, गरमी से राहत पहुंचाएं।
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