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राख करो फिर से लंका
Webdunia
गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014 (13:51 IST)
- विष्णु गुप्त 'विजिगीषु' जलालाबाद (उप्र)
जगे भवानी देश की, उठे भवानी देश की।
ध्वजा नहीं झुकने देंगे, अपने पावन देश की।।
मेघनाद मायावी है, छल करने का आदी है।
इसकी इच्छा पूर्ण करो, पाक मिटा प्रण पूण करो।।
इसने कितने दंश दिए, नागों के विष वंश दिए।
जनमेजय सा यज्ञ करो, आहुति दे निरवंश करो।।
पवनपुत्र हनुमान तुम्हीं, अंगद के बलवान तुम्हीं।
रामानुज के रोष तुम्हीं, राघव के संधान तुम्हीं।।
सीमा के उस पार चलो, असुरों का संसार दलो।
राष्ट्रध्वजा फहराओ तुम, कालजयी इस देश की।।
सदियों पर सदियां बीतीं, अन्यायी कड़ियां टूटी।
क्रूर थपेड़े सदा सहे, चंगेजी हर वार सहे।।
आंधी औ' तूफान मिले, संकट के वरदान मिले।
मझधारों से पार हुए, असिधारों पर सदा जिए।।
हमें मिटाने जो भी आए, मरे मिटे परवान चढ़े।
रण में पानी मांग गए, कन्या देकर दान गए।
कालजयी प्रलयंकर है, कण-कण रुद्र भयंकर है।
नयन तीसरा खोलो अब, जय हो देव महेश की।।
सवा लाख से एक लड़े, की ललकार तुम्हीं तो हो।
हल्दी घाटी में चमकी, वह असिधार तुम्हीं तो हो।।
सात तवों को भेद गया, पृथ्वीराज के तीर तुम्हीं।
मां की शान बचाने वाले, गोरा बादल वीर तुम्हीं।।
आंधी और बवंडर के मुख, सदा मोड़ते आए हैं।
सागर की चंचल लहरों पर नौका खेते आए हैं।।
भीम भयंकर करो गर्जना, कम्पित हो भूडोल उठे।
फिर से जय हुंकार भरो, कसम तुम्हें दशमेश की।।
जब-जब जगी जवानी है, रच डाला इतिहास नया।
अंधियारे के प्राण जला, जग को दिव्य प्रकाश दिया।।
अंगड़ाई ले उठी जवानी, कांप गया जल-थल-अम्बर।
महाकाल का आसन डोला, दिग्मंडल कांपा थर-थर।।
कल्पान्तक अभियान करें, दिति के स्वप्न मसान करें।
खण्ड-खण्ड भारत मां का, चित्र पूर्ण कर मान करें।।
उठो बबूलों के वन को, क्षण में वीरों छांट दो।
दुश्मन के आंगन में जाकर, पुन: तिरंगा गाड़ दो।
राख करो फिर से लंका, अन्यायी लंकेश की।।
- साभार देवपुत्र
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