हिन्दी का पर्चा...!

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पर्चा देने को चले
मिस्टर बुद्धूराम,
वर्ष भर कुछ किया नहीं
काम हुआ तमाम,
काम हुआ तमाम, समझ
कुछ नहीं आया,
पर्चे में भी यूँ ही मन से
मस्का लगाया।

प्रेमचंदजी मन से कोठी में
मुंशीगिरी करते थे
सूरदासजी नेत्र चिकित्सा
किया करते थे
तुलसीदास जी थे राम के
प्रिय मित्र
इसीलिए तो रामायण पर
अंकित उनका चित्र

उत्तर ये जब बुद्धू ने
पापा को बतलाए
पलट कर पकड़ने पड़े कान
और चाँटे खाए।

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