[भारतवर्ष गुलाम है, ब्रिटिश हुकूमत का दमन चक्र जारी है। चारों और त्राहि-त्राहि मची है। उनके निरंकुश शासन के आगे आमजन असहाय हैं लेकिन नवयुवकों में आजादी पाने का जुनून सवार है। सरदार भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, बटुकेश्वर दत्ता, भगवानदास माहौर, पंडित परमानंद और सदाशिवराव मलकापुरकर जैसे हजारों युवक अपने प्राणों की बाजी लगाकर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने को मजबूर कर रहे हैं।
इन देशभक्तों और वीर क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए इनके विरुद्ध झूठे मुकदमें बनाकर इन्हें जेलों में ठूंसा जा रहा है। और काले पानी जैसी कठोर सजाएं दी जा रही हैं। जेलों में इन्हें कठोर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जा रही हैं। किंतु क्रांतिकारियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं।
भगवानदास माहौर और सदाशिवराव मलकापुरकर की पुलिस को तलाश है। इससे बचने के लिए दल के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने इन्हें पूना जाकर नवयुवकों में चेतना फूंकने का आदेश दिया है। और इसी तारतम्य में ये दोनों गोला-बारूद सहित भुसावल स्टेशन पर पकड़े जाते हैं। इन्हें जलगांव जेल में रखा गया है। लाहौर बम कांड के आरोपियों की पहचान के लिए देश के गद्दार और पुलिस के मुखबिर बने फणींद्र घोष और जय गोपाल कोर्ट में गवाही देने आने वाले हैं।
सदाशिवराव मलकापुरकर इन गद्दारों को जेल परिसर में ही मारने की योजना बनाते हैं। इसी तारतम्य में वे चंद्रशेखर आजाद से एक रिवाल्वर की व्यवस्था करने का आग्रह करते हैं। सदाशिवराव के अग्रज वीर क्रांतिकारी शंकरराव मलकापुरकर जेल के भीतर रिवाल्वर भिजवाने का उपक्रम करते हैं और किस तरह खतरा उठाकर भात के कटोरे में रखकर रिवाल्वर जेल के भीतर भिजवाते हैं इसी संदर्भ में है यह छोटा-सा नाटक]
परदा खुलता है और सूत्रधार दिखाई देता है
पिछे जलगांव की जेल दिखाई दे रही है, दरवाजे पर दो प्रहरी तैनात हैं।
सूत्रधार- यह देखो जलगांव की प्रसिद्ध जेल
इसके भीतर प्रवेश पर कठोर पाबंदी है। जेल के चारों ओर कड़ा पहरा है। इसी जेल में बंद हैं भुसावल बम कांड के अभियुक्त वीर क्रांतिकारी सदाशिवराव मलकापुरकर एवं भगवानदास माहौर। इन्हें जेल में कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है। अब देखिए आगे क्या होता है {सूत्रधार चला जाता है}
जेल के खास कर्मचारी ही भीतर आ जा रहे हैं। तभी मुख्य द्वार पर प्रहरी के सामने तेज तर्रार व्यक्तित्व का धनी एक व्यक्ति साधारण वेशभूषा में उपस्थित होता है। वह व्यक्ति कोई और नहीं सदाशिवराव मलकापुरकर के अग्रज शंकरराव मलकापुरकर हैं।
शंकरराव मलकापुरकर- [प्रहरी से] मुझे जेलर साहब से मिलना है, मुझे जेल के भीतर जाने दीजिए।
प्रहरी- आप जेलर साहब से क्यों मिलना चाहते हैं? किसी विशेष प्रयोजन के बिना वे किसी से नहीं मिलते।
शंकरराव- मुझे विशेष प्रयोजन से ही मिलना है। मैं भुसावल बम कांड के अभियुक्त सदाशिवराव मलकापुरकर का बड़ा भाई शंकरराव हूं।
प्रहरी- [सतर्क हो जाता है] तो आप क्रांतिकारियों के रिश्तेदार हैं, तब तो आप अंदर प्रवेश बिलकुल नहीं कर सकते।
शंकरराव- देखिए मुझे अत्यंत आवश्यक काम है। आप भीतर जाकर जेलर से इजाजत ले आइए। उन्हें सूचित करना कि शंकरराव मलकापुरकर आया है। इतना कहकर वे एक रुपए का सिक्का निकलकर प्रहरी के हाथ की मुट्ठी खोलकर हथेली पर रख देते हैं।
प्रहरी- ठीक है, मैं पूछकर आता हूं। [वह जेल के भीतर चला जाता है। और शीघ्र ही वापस आकर शंकरराव को भीतर जाने का इशारा करता है।]
शंकरराव भीतर प्रवेश कर जाते हैं और जेलर के कक्ष में दिखाई देते हैं।
शंकरराव- जय हिंद जेलर साहब।
जेलर- कैसा जयहिंद [वह गुर्राकर बोला]
शंकरराव- हम लोग हिन्दुस्तानी हैं और अपने देश की जय बोलते हैं तो आप क्यों क्रोधित होते हैं?
जेलर- बोलो क्या काम है? मेरे पास फालतू समय नहीं है।
शंकरराव- देखिए मेरा छोटा भाई यहां की जेल में बंद है। मैं चाहता हूं उसे घर का बना खाना खिलवाऊं।
जेलर- क्यों, यहां के खाने में क्या परेशानी है उसे?
शंकरराव- यहां का खाना उसे माफिक नहीं बैठ रहा है। वह बीमार रहने लगा है।
जेलर- तो हम क्या कर सकते हैं। बगावत करेगा तो मरेगा ही।
शंकरराव- वह जो कर रहा है अपने देश के लिए कर रहा है, आजादी पाने के लिए कर रहा है। वह कोई डकैत नहीं है, ना ही कोई चोर। उसे मैं जेल का खाना नहीं खाने दूंगा।
जेलर- ठीक है घर का खाना खिलाइए, उसकी बीमारी ठीक कीजिए किंतु खाना रोज चेक कराना पडेगा। हमारे कर्मचारी खाने का निरीक्षण करेंगे।
शंकरराव- धन्यवाद। हम रोज खाना आपके कर्मचारियों से चेक कराएंगे। आप भी रोज चेक करिए।
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[दूसरा दृश्य]
शंकरराव खाने का डिब्बा लाते हुए दिखाई देते हैं एवं प्रहरी डिब्बा खुलवा कर निरीक्षण करता हुआ दिखाई देता है। प्रहरी खाना जेल के भीतर ले जाता है और थोड़ी देर बाद दूसरा प्रहरी खाली डिब्बा लेकर प्रतीक्षारत शंकरराव को वापस कर देता है।
[नेपथ्य से आवाज आती है] इस तरह शंकरराव मलकापुरकर अपने वीर क्रांतिकारी भाई सदाशिवराव को रोज डिब्बे में घर का खाना भेजने लगे। शंकरराव डिब्बा वापस लेने की प्रतीक्षा के बहाने जेल के प्रहरियों की गतिविधियों पर दृष्टि रखते हैं, उनका असली मकसद तो खाने के डिब्बे में चंद्रशेखर आजाद के आदेशानुसार एक रिवाल्वर जो उन्होंने भिजवाई थी, जेल के भीतर सदाशिव के पास भिजवाना था।
एक बड़ा-सा कटोरा लेकर शंकरराव जेल के सामने दिखाई पड़ते हैं।
शंकरराव [प्रहरी से]- नमस्कार चोबदार साहब।
प्रहरी- नमस्कार राव जी, आज आप बहुत जल्दी आ गए।
शंकरराव- आज खाना कुछ जल्दी बन गया। कटोरे में भात लेकर आया हूं। चावल सदाशिव को बहुत पसंद है। भात ठंडा न हो जाए इसलिए जल्दी लेकर आ गया। इसे शीघ्र ही भीतर भिजवा दें। हां, पहले एक बीड़ी पीजिए। बड़ी ठंड है कुछ गरमी आ जाएगी। [बीड़ी निकलकर उसे देते हैं]
प्रहरी- आश्चर्य है आपको कैसे मालूम पड़ा कि मुझे बीड़ी की दरकार है? [वह बीड़ी ले लेता है]
शंकरराव- [हंसते हुए] हम तो अंतर्यामी हैं। सबके मन की बात जान लेते हैं।
प्रहरी- [कटोरे का ढक्कन थोड़ा सा हटाता है फिर बंद कर देता है। इसमें तो चावल की बहुत बढ़िया सुगंध आ रही है। खूब सेवा करो भाई की। भाई हो तो ऐसा।
शंकरराव- कटोरा जल्दी भीतर दे आइए। गरम-गरम खा लेगा तो ठीक रहेगा। सदाशिव कई दिनों से सूचित कर रहा कि रोटी खाते-खाते ऊब हो गई है, कुछ स्वाद बदल जाए तो अच्छा लगेगा।
प्रहरी- हां, हां... क्यों नहीं अभी दे आता हूं। बीड़ी के एक-दो सुट्टे और मार लूं बस। दो दिन से सो नहीं पाया हूं, जरा थकान तो उतर लूं [वह बीड़ी के काश लेने लगता है और फिर कटोरा जेल के भीतर ले जाता है। और सदाशिव को दे देता है]
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तीसरा दृश्य
सदाशिवराव एवं भगवानदास माहौर जमीन पर अपनी कोठरी में बैठे हैं।
सदाशिव गुनगुना रहे हैं [देश पर क़ुर्बान होऊं अब तो ये जी चाहता है, हंसते- हंसते जान दे दूं, अब तो ये जी चाहता है।
माहौर- [हंसकर] जय गोपाल के लूं प्राण मैं, अब तो ये जी चाहता है। दूं बंदूक उस पर तान मैं, अब तो ये जी चाहता है।
सदाशिव- [कटोरा देखकर] प्रतीत होता है अण्णा ने रोटी के बदले और कुछ भिजवाया है। [कटोरे का ढक्क्न हटाकर देखते हैं] अरे! आज तो चावल हैं गरम-गरम, आइए चावल खाते हैं और उन्होंने कटोरा अपनी थाली में पलटा दिया। [आश्चर्य से] अरे! इसमें तो रिवाल्वर है। [प्रसन्न होकर] माहौर अपना काम हो गया। रिवाल्वर आ गई।
माहौर- [अति उत्साह से] रिवाल्वर आ गई वाह, रिवाल्वर आ गई मतलब फणींद्र जैसे देशद्रोही की मृत्यु आ गई। जय गोपाल की मौत निकट आ गई। देश के गद्दारों को सजा देने की घड़ी आ गई।
सदाशिव- यह तो ठीक है, पहले यह तो सोचो कि रिवॉल्वर छुपाकर कहां रखें। मालूम नहीं फणींद्र और जय गोपाल को कब पेशी पर लाया जाएगा। तब तक तो रिवॉल्वर सुरक्षित रखना पड़ेगी।
माहौर- रिवॉल्वर इसी कमरे में रहेगी। दिन में कंबल में छुपकर रखेंगे और रात को बिस्तर के नीचे।
सदाशिव- बहुत सतर्क रहना पड़ेगा। स्वीपर रोज कमरा साफ़ करने आता है। और जेलर भी चक्कर मारता फिरता है। खैर, अब तो जी चाहता है कि जितनी जल्दी हो फणींद्र को शूट कर दूं या जय गोपाल की जान ले लूं.........
माहौर- [बीच में ही बात काटकर] मगर सदू काका बॉस ने यह काम तो मुझे सौंपा है। आजाद का आदेश है कि गोली माहौर ही चलाएगा [धीरे से हंसते हैं]
सदाशिव हां- हां तुमको ही यह काम करना है, गोली कोई भी चलाए इन देशद्रोहियों को मृत्यु मिलना ही चाहिए। जिनको देशभक्त समझा था, जिनको हमनें अपने सभी गोपनीय अभियानों में शामिल किया वे ही सरकारी गवाह बन गए। कमीने कहीं के [दांत पीसते हैं]
भारत मां की कोख का अपमान किया है इन्होंने। माहौर इन्हें ऐसा मारना कि मौत भी कांप उठे।
माहौर- देखना सदू काका, इनको तो ऐसा मारूंगा कि देश के दुश्मन थर्रा उठेंगे।
सदाशिव- इनकी मौत से भारत माता के कलेजे को भी ठंडक मिलेगी। कितना नुकसान किया है इन्होंने हमारा। हमारे बहुत से साथी और गोला-बारूद इनकी मुखबरी से पकड़े गए। और हमारे ये देशभक्त साथी जेल में पड़े यातनाएं भोग रहे हैं।
माहौर- घर का भेदी लंका ढाहे। इन कायरों को अपने दल में शामिल ही नहीं करना चाहिए था।
सदाशिव- किसके माथे पर लिखा है कि यह कायर निकलेंगे। और देशद्रोह करके पुलिस के मुखबिर बन जाएंगे।
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चौथा दृश्य
आज सदाशिवराव मलकापुरकर और भगवानदास माहौर के विरुद्ध लाहौर बमकांड के चश्मदीद गवाह के रूप में मुखबिर फणींद्र घोष एवं जय गोपाल आ रहे हैं। कोर्ट में बहुत भीड़ है। वीर क्रांतिकारी सदाशिवराव और भगवानदास माहौर की एक झलक पाने के लिए भीड़ उतावली हो रही है। वहीं फणींद्र घोष एवं जय गोपाल जैसे देशद्रोहियों को देखने के लिए भी भीड़ उत्सुक हो रही है|
सदाशिव शेर की तरह सिर ऊंचा किए और सीना ताने हुए और माहौर हाथी जैसी मतवाली चाल से चलते हुए कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच हथकड़ी पहने हुए दिखाई पड़ते हैं। उधर फणींद्रनाथ घोष एवं जय गोपाल भी पुलिस के घेरे में कोर्ट परिसर में आ गए हैं। राव मलकापुरकर जी की जय, भगवान दास माहौर जी की जय के नारे गूंजते सुनाई पड़ रहे हैं। फणींद्र घोष जैसे देशद्रोही को मार डालो। जय गोपाल मुर्दाबाद के नारे भी सुनाई पड़ रहे हैं। पुलिस बार-बार शांत रहने की अपील कर रही है| अभी पुकार होने में देर है। बड़ी बेसब्री से लोग इंतजार कर रहे हैं।
माहौर- इस फणींद्र को तो मैं आज ही चटका डालूंगा। ऐसे मारूंगा कि तड़प-तड़प कर मरे। उसे मालूम हो जाना चाहिए कि देशद्रोह की सजा क्या होती है। पहले एक जांघ में गोली मारूंगा फिर दूसरी में। इसके बाद एक बांह में फिर दूसरी बांह में, ताकि वह देख सके कि माहौर गद्दारों और देशद्रोहियों को कैसी सजा देता है।
सदाशिव- ज्यादा उत्तेजना ठीक नहीं। थोड़ा शांति से काम लो। फिर इतना मौका भी कहां मिलेगा। निशाना चूक भी सकता है। पुलिस भी मुखबिरों को बचाने का पूर्ण प्रयास करेगी।
[दोनों बहुत धीरे-धीरे बातचीत कर रहे थे ताकि कोई तीसरा न सुन लें।
माहौर- एक साथ दोनों पर फायर करूंगा, पहला फणींद्र पर और दूसरा जय गोपाल पर। [माहौर बहुत उत्तेजित हो रहे थे।
सदाशिव- धैर्य से काम लो। बहुत ही कठिन और जोखिम भरा काम है, उत्तेजना में कहीं निशाना चूक गया तो सब खेल बिगड़ जाएगा। बहुत ही सतर्क रहना पड़ेगा।
माहौर- कठिन और जोखिम भरा कैसे है? गद्दारों और देशद्रोहियों को मारने के लिए प्राण भी देना पड़े तो स्वीकार है।
सदाशिव- दोपहर हो गई अभी तक पुकार नहीं हुई, लगता है अभी मजिस्ट्रेट नहीं आया है।
मालूम नहीं क्या षड्यंत्र चल रहा है पुलिस के मन में। फणींद्र और जय गोपाल वहां दूर खड़े दिख रहे हैं। [सिर घुमाकर इशारा करते हैं।
माहौर- पास आएं तो बात बने। दोपहर बीत गई, खाने का समय हो गया और पुकार ही नहीं हो रही [माहौर धीरे-धीरे बडबड़ा रहा हैं]
[दोपहर के अवकाश में कोर्ट परिसर में ही फणींद्र घोष और जय गोपाल पुलिस सुरक्षा में खाना खाने बैठ गए है। माहौर और सदाशिव पुलिस सुरक्षाकर्मियों के सहित धीरे-धीरे उनके पास पहुंच गए। मौक़ा देखते ही माहौर ने फायर कर दिया लेकिन गोली फणींद्र घोष के कंधे को छूकर निकल गई। वह नीचे गिर गया, एक पेड़ के पीछे छुप गया। जय गोपाल भी पेड़ की ओट में आ गया।
सदाशिव- फायर करो, फायर करो माहौर [सदाशिव जोर से चिल्ला रहे हैं]
माहौर फायर करने का उपक्रम करते हैं, लेकिन गोली नहीं चली।
सदाशिव- क्या कर रहे हैं? फायर में शीघ्रता करें।
माहोर- रिवॉल्वर काम नहीं कर रहा है, लगता है यह जाम हो गया है। [माहौर बार-बार प्रयास कर रहे हैं लेकिन पिस्तौल ने तो जैसे काम करने से ही इंकार कर दिया}
बच गए साले गद्दार [माहौर दांत पीसते हैं, कोर्ट परिसर में भगदड़ मच जाती है। किंतु जिन्होंने माहौर को गोली चलते हुए देखा और सदाशिव मलकापुरकर को उन्हें उत्साहित करते देखा वे माहौर जिंदाबाद, मलकापुरकर जिंदाबाद, भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। माहौर और सदाशिव को पुलिस ने जकड़ लिया और माहौर के हाथ से रिवॉल्वर छीन ली।
पुलिस सुरक्षा के बीच फणींद्र घोष और जय गोपाल को अस्पताल भेजा जा रहा है।
उपस्थित जनसमूह 'भारत माता की जय, अंग्रेजों वापस जाओ' के नारे लगा रहा है। पुलिस लाठीचार्ज कर रही है और सीटी बजा रही है। लोग पिटते-पिटते भी भारत माता की जय बोल रहे हैं।
[नेपथ्य से आवाज आती है]
देश के गद्दारों को अब न छोड़ेंगे
हाथ पैर तोड़ेंगे सिर भी फोड़ेंगे।
देश के दुश्मन कातिल मां के अब देखो,
कैसे उनकी हड्डी पसली तोड़ेंगे।
[फिर एक संवेदनशील आवाज गूंजती है]
'मैं एक कटोरा हूं, भात का कटोरा हूं।' देश के गद्दारों का विनाश करने के उद्देश्य से वीर क्रांतिकारियों ने मेरा उपयोग भात के नीचे छुपाने के लिए किया और वह भी भारत मां के सच्चे सपूत वीर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद के द्वारा भेजी गई रिवॉल्वर को छुपाने के लिए। वीर बहादुर आजाद के करकमलों को स्पर्श करने वाली रिवॉल्वर को मेरी काया ने छुआ।
शंकरराव के पंजों में पकड़ी गई रिवॉल्वर को मेरे बदन को आलोकित किया और सदाशिवराव मलकापुरकर ने मुझे हाथ से उठाया। मेरे ऊपर रखा भात हटाया और उसके नीचे रखी रिवॉल्वर को चूमा एवं भगवानदास माहौर जैसे वीर क्रांतिकारी ने उस रिवॉल्वर को लेकर कितनी आशाभरी निगाहों से निहारा था। आज भी वी आंखें भूत को वर्तमान के रास्ते भविष्य के पथ का निर्माण करती हुईं स्पष्ट दिखाई दे रहीं हैं। 'हां, हां, हां... मैं भात का कटोरा हूं, धन्य हूं, धन्य हूं, मैं भात का कटोरा हूं'।
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