कहानी : खोज

राजेश मेहरा
स्कूल में जैसे ही घोषणा हुई कि कल राजू का ग्रुप पिकनिक पर जाएगा, तो इस बात पर वह बहुत खुश था। 


 
घर पहुंचकर उसने पिकनिक पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। मां ने राजू को समझाया कि पिकनिक पर सबके साथ ही रहना, कहीं अकेले मत जाना और पानी और खतरनाक जगह से दूर ही रहना। राजू ने मां को कहा कि वो उनकी बातों का ध्यान रखेगा।
 
सुबह राजू अपने ग्रुप के साथ बस में पिकनिक स्पॉट की तरफ चल दिया। सारे स्टूडेंट खुश थे और बस में अंताक्षरी खेल रहे थे और गाना गा रहे थे। करीब 2 घंटे के सफर के बाद राजू का ग्रुप पिकनिक स्पॉट पर पहुंचा। राजू के टीचर ने भी सभी स्टूडेंट्स को सावधान रहने को कहा और सबको एकसाथ ही आने-जाने की इजाजत दी।
 
सभी स्टूडेंट्स पिकनिक को एन्जॉय कर रहे थे तभी दो छोटी क्लास के स्टूडेंट्स टीचर के पास आए। वे घबराए हुए थे। वे बोले- 'सर मोहित काफी देर से मिल नहीं रहा, कुछ देर पहले वो हमारे साथ ही उधर पेड़ों के पास खेल रहा था लेकिन अब वो वहां नहीं है।' 
 
टीचर उन दो स्टूडेंट्स के साथ उस जगह पहुंचे, जहां उन्होंने आखिर में मोहित को देखा था। अब सारे स्टूडेंट्स भी उस जगह जमा हो गए थे। टीचर भी अब चिंतित दिखाई दे रहा था। उसने सब स्टूडेंट्स को मोहित को इधर-उधर ढूंढने को कहा और वे भी मोहित को ढूंढने लग गए। सब स्टूडेंट्स ने थोड़ी देर बाद टीचर को बताया कि मोहित कहीं नहीं मिल रहा था।
 
टीचर अब परेशान हो गया था और एक जगह बैठ गया।
 
उनको परेशान देखकर राजू बोला- 'सर आप चिंता ना करें। मैं और बीरू जंगल में जाकर उसको देखकर आते हैं। हो सकता है वो कहीं जंगल में तो नहीं गया?' टीचर ने उन्हें परमिशन दे दी लेकिन उन्हें सावधान भी रहने को कहा।
 
राजू और बीरू जंगल की तरफ चल पड़े।
 
बीरू ने पुछा- 'राजू हम जंगल की तरफ ही क्यों जा रहे हैं जबकि हम मोहित को नदी की तरफ भी देख सकते है?' 
 
राजू बोला- 'बीरू, तुमने सही सवाल किया है। मैं जंगल की तरफ इसलिए जा रहा हूं कि मैंने छोटे जूतों के निशान जंगल की तरफ जाते देखे हैं, जो मोहित के ही हो सकते हैं, क्योंकि वे बहुत छोटे है।' बीरू राजू की बात और उसके दिमाग से प्रभावित हुआ।
 
वे दोनों मोहित के जूतों के निशान के पीछे-पीछे चलने लगे। थोड़ी दूर जाने पर घास आ गई और अब मोहित के जूतों के निशान दिखाई नहीं दे रहे थे।
 
बीरू ने पुछा- 'अब क्या करेंगे?' 
 
राजू बोला- 'घास को ध्यान से देखो। घास थोड़ी दबी हुई है इसका मतलब कोई इन पर चलकर गया है और वो मोहित ही है। आओ, अब दबी घास के पीछे-पीछे चलते हैं।'
 
वे दोनों आगे बढ़े तो देखा कि अब घनी झाड़ियां आ गई थीं और अब तो मोहित के जूतों के निशान भी गायब थे। अब राजू परेशान हो गया। थोड़ी देर देखने के बाद राजू ने पाया कि कुछ झाड़ियां मुड़ी हुई थीं, जैसे उनको तोड़कर रास्ता बनाया गया हो।
 
राजू और बीरू अब उन टूटी झाड़ियों को देखकर आगे बढ़ने लगे। उन्हें कुछ टूटे फूल और कुछ टमाटर के अधखाए टुकड़े भी मिल रहे थे। उनको लग रहा था कि मोहित कुछ खाता हुआ किसी का पीछा करता हुआ आगे जंगल में जा रहा था। वे दोनों काफी दूर जंगल में आ गए थे। बीरू ने राजू से और आगे न जाने को कहा और वापस चलने की सलाह दी लेकिन राजू के मनाने पर वे आगे बढ़ने लगे।
 
राजू ने कहा कि हम अब मोहित के करीब ही हैं। उन दोनों ने अब मोहित को जोर से पुकारना शुरू किया लेकिन जंगल में पक्षियों की चहचहाहट ज्यादा थी इस कारण उन्हें अपनी ही आवाज कम सुनाई दे रही थी। 
 
अब राजू को कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। राजू ने नोटिस किया कि चिड़ियों की चहचहाहट एक पेड़ के पास से ज्यादा आ रही थी।
 
राजू बोला- 'आओ बीरू, मोहित मिल गया।'
 
वे दोनों उस पेड़ के नीचे पहुंचे तो देखा कि मोहित एक गड्ढे में हाथ डाल रहा था। उसने उसमें से एक खरगोश का बच्चा पकड़ लिया था। 
 
उनके पूछने पर मोहित ने बताया कि वो एक खरगोश के बच्चे का पीछा करता हुआ यहां तक आ गया था और उसे पता ही नहीं लगा। उसने उनसे 'सॉरी' कहा और आगे से ऐसा न करने कि कसम खाई। 
 
राजू और बीरू उसको लेकर उन्हीं निशानों के सहारे वापस पिकनिक की जगह पर चल पड़े।
 
बीरू ने पूछा- 'राजू, तुम्हें कैसे पता चला कि मोहित इसी पेड़ के नीचे है?' 
 
राजू बोला- 'चिड़िया तब ही ज्यादा चहचहाहट करती है, जब कोई अजनबी उनके नजदीक होता है और मोहित उनके लिए अजनबी था।
 
बीरू ने राजू के दिमाग के दाद दी। पिकनिक पर पहुंचने पर टीचर और सब स्टूडेंट्स ने राजू की तारीफ की।
 
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