कहानी : नववर्ष का संकल्प

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- नरेंद्र देवांगन

नववर्ष अर्थात वर्ष प्रतिपदा आते ही खुशियों की लहर दौड़ गई। सुबह से ही सब बच्चे खूब चहक रहे थे। मोहल्ले के कई परिवारों ने मिलकर घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया। सभी बच्चों ने राजधानी हाट जाने की जिद की।
 
तरह-तरह के आकर्षक वंदनवारों से सजा था राजधानी हाट। अंदर आते ही सुंदर गुड़िया, लाख के गहने, कपड़े से बने घोड़े-हाथी अपनी ओर बुलाने लगे। परंतु बच्चे सब चीजों को नजरअंदाज करते हुए भागे सीधे कपड़े के सुंदर रंग-बिरंगे थैलों की ओर। थैलों पर सुंदर कढ़ाई की गई थी। शीशे जड़े, मोती जड़े, नकली कुंदन के काम के थैले, सबको मोहित कर रहे थे।
 
मां, मुझे नए वर्ष का उपहार यह थैला दिलवा दो। श्रेयांश ने सुंदर सा थैला उठाकर कहा।
 
ठीक है, इसके बाद और कुछ लेने की जिद मत करना। मां ने चेताया। 
 
श्रेयांश खुश था। मैं थैला दिलवाने के ‍लिए तुरंत मान गई थी।
 
 

देखते ही देखते सब बच्चों ने अपने-अपने लिए थैले पसंद कर लिए। थैले वाला खुश हो रहा था। नया वर्ष उसके लिए शुभ था। सुबह-सुबह इतने थैले बिक गए थे।


 
कुछ आगे बढ़ते ही बच्चों ने अपने-अपने पिताजी के लिए जयपुरी जू‍तियां पसंद कीं। सब मस्ती के मूड में थे। बच्चों की बात मानकर सबने कढ़ी हुई हाथ से बनी जूतियां ले लीं।
 
कुछ देर बाद बच्चों ने देखा कि सबकी मांएं चमड़े, हाथी दांत व हड्डियों के गहनों की दुकान पर झुकी हुईं हैं। वे एकाएक चीखे- अरे आप, यह क्या कर रही हैं?
 
सब महिलाएं हैरान थीं कि इन बच्चों को एकाएक क्या हो गया। तभी श्रेया बोली- हम ऐसा किसी कारण से कह रहे हैं। चलिए, सामने कुर्सी पर बैठें फिर सारी बात बताते हैं।
 
सब बेंच पर बैठ गए, तो प्रकृति ने कहना शुरू किया- असल में कल ही हमारी शाला में एक फिल्म दिखाई गई थी। उस फिल्म में हमने अपने प्यारे जानवरों को बेरहमी से मरते देखा। जानवरों की त्वचा के लिए उन्हें मारकर चमड़े के गहने, चमड़े के बटुए व कई रोजमर्रा की चीजें बनाई जाती हैं। उफ् अपनी जरूरत के लिए इंसान, बेचारे जानवरों के मासूम कोमल बच्चों को मार देता है। 
 
बात को आगे बढ़ाते हुए प्रतीक कहने लगा- फिल्म देखने के बाद हम बच्चों ने प्रण ले लिया कि हम अब चमड़े व हाथी दांत आदि से बनी चीजों का लालच नहीं करेंगे। आप लोग भी चमड़े की चीजें न खरीदें। बाजार में यदि इन चीजों की मांग न होगी, तो वे जानवरों को मारकर चीजें क्यों बनाएंगे?
 
तभी श्रेयांश के पिताजी ने लंबी सांस भरकर कहा- बच्चों, यह हम सब जानते हैं। फिर भी... चलो, आज नववर्ष पर हम सब संकल्प लेते हैं कि जानवरों की खाल, दांतों, हड्डियों से बनी चीजें उपयोग नहीं करेंगे। दूसरों को भी इन चीजों को उपयोग न करने की राय देंगे।
 
सबने हामी भरी और सबकी मांओं ने भी एक-एक सुंदर थैला खरीद लिया। वे सब बोलीं- कल से हम चमड़े के थैलों की जगह भारतीय पारंपरिक हस्तकला के नमूने वाला सुन्दर थैला इस्तेमाल करेंगे।
 
श्रेया की मां बोलीं- अच्‍छे काम में देर कैसी। चलो, आज से ही शुरुआत करें।
 
सबने मिलकर जोर से कहा- नववर्ष हम सबके लिए शुभ हो और सभी जीव-जंतुओं के लिए भी।
 
बच्चे खुश थे। बड़ों ने उनकी बात बहुत जल्दी और अच्छी तरह समझ ली थी। 
 
साभार - देवपुत्र 
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