चटपटी बाल कहानी : असली इनाम

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- अनुरूपा चौघुले


 
सड़क के इस पार 5 कुत्ते के पिल्ले झुंड में एक-दूसरे से सटे हुए बड़ी ही गुमसुम मुखमुद्रा में बैठे थे। आखिर वजह भी तो वैसी ही थी ना! बात यूं थी कि सड़क के उस पार एक बहुत बड़ा विद्यालय था। बड़ा-सा अहाता था, जो ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था। पाठशाला के प्रवेश द्वार पर भव्य लोहे का दरवाजा बना हुआ था। 
 
एक चौकीदार बड़ी-बड़ी मूंछों वाला, हट्टा-कट्टा कद्दावर, हाथ में मोटी-सी लाठी लिए दरवाजे पर खड़ा पहरेदारी करता था। कभी जब चौकीदार की नजर बचाकर वे पिल्ले लोहे के दरवाजे में बनी जाली से अहाते के अंदर झांककर देखते तो उनका दिल उछलने लगता था। मैदान में लगे हुए झूले पर बच्चे शोर मचाते हुए झूलते थे, कभी फिसलपट्टी पर किलकारी भरते हुए फिसलते थे, तो कभी गोल वाली चकरी पर बैठकर गोल-गोल घूमते हुए हंस-हंसकर दोहरे हो जाते थे। 
 
बच्चों की ऐसी उधमकूद देखकर वे पिल्ले सोचा करते थे कि काश! ऐसी मस्ती हम भी कर पाते, लेकिन दरवाजे पर खड़ा चौकीदार तो उन्हें पास भी नहीं फटकने देता था। वो ऐसी लाठी घुमाता कि वे 'क्याऔं क्याऔं' करते हुए भाग खड़े होते थे। 
 
 


 


एक दिन की बात है। रात के समय पिल्लों ने विद्यालय अहाते में चीं-चीं की आवाजें सुनीं। उन सबने हौले से जाकर दरवाजे की जाली में झांककर देखा और एक अलग ही नजारा पाया। उन्होंने देखा कि छ:-सात बंदरों का झुंड अहाते में घुस आया था। दीवार से सटकर लगे हुए बड़े-बड़े पेड़ों पर से छलांग लगाते हुए वे सब अंदर आ पहुंचे थे। उनमें से कोई झूले पर झूल रहा था, कोई फिसलपट्टी का मजा ले रहा था, कोई चकरी पर घूमते हुए, कुछ सी-सा पर बैठे खुशी के मारे अपने दांत दिखा रहे थे। 
 
यही सब देखकर तो सब पिल्ले मायूस हो गए थे। वे जानते थे कि अहाते की इतनी ऊंची दीवारें लांघना उनके बस की बात नहीं थी। फिर एक दिन पिल्लों को अहाते के अंदर से ठक्-ठक् की आवाजें आती सुनाई दीं। रात का समय था। पूरा मोहल्ला खामोश था, ध्यान से देखा तो पाया ‍कि लोहे के दरवाजे का ताला टूटा हुआ था। चौकीदार को शायद गहरी झपकी लग गई थी। वे सब पिल्ले हिम्मत करके अंदर घुसे। उन्हें तीन-चार नकाबपोश विद्यालय के कार्यालय का ताला तोड़ते दिखाई दिए। 
 
पिल्ले समझ गए कि विद्यालय में चोर घुस आए हैं। उन्होंने एक स्वर में जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया। कुछ अपने मुंह से सोए हुए चौकीदार की पेंट पकड़कर खींचने लगे। चौकीदार जाग गया। उसने भी विद्यालय के अंदर से आती आवाज सुनी। वो 'चोर-चोर' का शोर मचाता कार्यालय की ओर दौड़ा, उसने जोर-जोर से लाठी बजाई। चोर बाहर की तरफ भागने लगे, लेकिन दरवाजे पर पहरेदारी करते वे सारे पिल्ले डटे हुए थे। तभी चौकीदार ने आकर उन चोरों को धरदबोचा। लाठी से उनकी पिटाई की और पुलिस के हवाले कर दिया।


 
चौकीदार पूरा घटनाक्रम समझ गया था कि उन पिल्लों की वजह से ही चोर पकड़ में आए हैं और वह ये भी जान गया था कि उसकी नौकरी भी इन्हीं पिल्लों के कारण बच गई थी। उस घटना के बाद से सब पिल्ले विद्यालय के उस चौकीदार के मित्र बन गए। 
 
अब चौकीदार उन्हें लाठी से भगाता नहीं था ‍बल्कि प्यार से सहलाता था और उनके लिए अपने घर से रोटी भी लाता था और पिल्लों के लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये हुई थी कि अब विद्यालय के बच्चों की छुट्टी होने के बाद वे बेखौफ होकर मैदान में लगे झूले, फिसलपट्टी और चकरी का मजा लेते थे। 
 
उन्हें समझ में आ गया था कि चोरी से प्राप्त की हुई चीज की बजाए इनाम में मिली वस्तु का आनंद कहीं अधिक होता है। उन्होंने चौकीदार की मदद की थी और बदले में उनके मन की इच्छा पूरी हो गई थी। यही उनका इनाम था। 



साभार- देवपुत्र 
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