दशानन की रोचक कहानी : रावण की सीख...

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- डॉ. सेवा नन्दवाल


 
 
आधी रात के बाद अचानक वरुण की नींद खुली तो रावण के पुतले की याद आई। उसने धीरे से  दरवाजा खोला और घर के बाहर खुले में निकल आया। टहलते हुए उसे मैदान पर पहुंच गया,  जहां दशानन का विशाल पुतला आसमान छूने का प्रयास करता प्रतीत हो रहा था। वरुण को  आश्चर्य हुआ। रावण जाग रहा था अत: उसने पूछ लिया- क्यों रावण महाशय! अपने दहन के  भय से नींद आंखों से गायब है? 
 
नहीं बच्चे, ऐसी बात नहीं, मुझे अपनी नियति पता है। मेरी सांसें बंद होने में अभी कुछ घंटे  बाकी हैं। दशानन ने निर्विकार भाव से कहा।
 
वरुण ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया- मैंने सुना है आपके आखिरी समय में भगवान राम की प्रेरणा  से लक्ष्‍मण भी आपसे ज्ञान की बातें सीखने पहुंचे थे? 
 
हां, आए तो थे, हालांकि उनको सिखाने की मेरी क्या औकात? यह तो उनका बड़प्पन था, जो  मेरे पास आए, रावण ने सकुचाते हुए स्वीकारा।
 
फिर तो महाशयजी, आपको मुझे भी कुछ सीख देना पड़ेगी, वरुण ने कहा। 
 
तुम दया करो, वह जमाना और था। आज तो ज्ञान का विस्फोट हो गया है। ज्ञान प्राप्त करने  के अनेक स्रोत सहजता से उपलब्ध हैं। इंटरनेट तो ज्ञान का अथाह सागर है, रावण ने बताया। 
 
माना कि यह सब है फिर भी अपने मुंह से कम से कम एक सीख अवश्य देनी पड़ेगी, वरुण ने  विनम्रतापूर्वक आग्रह किया। 
 
रावण सोच में पड़ गया- इतने सारे विषय हैं, किस बारे में तुम्हें बताऊं, समझ नहीं आ रहा है।  मेरे विद्यार्थी जीवन के लिए जो आप उचित समझें, उनमें से एक बता दीजिए, वरुण ने रावण  का रास्ता सुगम किया। 
 
रावण ने गंभीर स्वर में कहा- हालांकि जो मैं बताने जा रहा हूं, वह कोई नई बात नहीं है,  लेकिन आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है। 
 
बताइए, वरुण सचेत हो गया।
 
देखो वत्स! अच्छे कामों को कल पर टालना उचित नहीं होता। एक बार टालने के बाद उनके  लिए अवसर न आएगा, रावण ने बताया प्रारंभ किया। 
 
हां, मेरे दादाजी कहते हैं... अवसर हर जगह उपलब्ध है, दिमाग और आंखें खुली रखने की  जरूरत है। हमेशा ध्यान रखो, एक दरवाजा बंद होते ही दूसरा तुरंत खुल जाता है, वरुण ने  कहा।
 
हां बेटे, मैंने सोचा था... नरक का द्वार बंद करवा दूंगा, समुद्र का खारा पानी निकालकर उसमें  दूध भरवा दूंगा, धरती से स्वर्ग तक सीढ़ियां बनवा दूंगा... पर मैं इन कामों को टालता रहा और  कल कभी आता नहीं, इसलिए समय का सदुपयोग करो, किसी अच्छे काम को कल पर टालो  नहीं, रावण ने अपनी गलती पर पछतावा जताते हुए समझाइश दी। 
 
मेरे दादाजी कहते हैं... समय निरंतर दौड़ रहा है। दुनिया के तमाम सारे पैसे खर्च कर भी बीता  हुआ एक पल पुन: प्राप्त नहीं किया जा सकता, वरुण ने बताया। 
 
बिलकुल ठीक कहते हैं, अच्छे कामों को टालना बुरा है और बुरे कामों को टालना अच्छा।  सीताजी के हरण में मैंने तत्परता दिखाई जबकि वह मुझे टालना चाहिए था। रावण ने अपनी  करनी पर दु:ख प्रकट किया। 
 
धन्यवाद रावणजी, आपकी यह सीख मैं आजीवन नहीं भूलूंगा और उससे लाभ उठाऊंगा। वरुण  ने वादा किया और घर की ओर लौट पड़ा। 

सीख देने के संतोष से रावण ने आंखें बंद कर लीं। 

साभार- देवपुत्र 
 
 
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