बगुले ने जोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला, 'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करूंगा। मेरी आत्मा जाग उठी है। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'
केकड़ा बोला, 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'
बगुले ने एक और हिचकी ली, 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पड़ेगा।'
बगुले ने केकड़े को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है, जिसकी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती। केकड़े ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया है और सूखा पड़ने वाला है।
उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकड़े, बत्तखें व सारस आदि दौड़े-दौड़े बगुले के पास आए और बोले, 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लड़ाओ, तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'
बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय है जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता है। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता है। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाए?