ड्राइवर भइया ने मुझे देखा और मुझे उठाकार उन आंटी को दे दिया। वह आंटी मुझे लेकर बहुत खुश थी, तो आखिर में ये आंटी मुझे खाएंगी। अ र रे नहीं, अभी ये आंटी तो मुझे अपने साड़ी के पल्लू मैं बंद कर कहीं और ले चली थी आखिर कौन खाएगा मुझे? मैं सोच मैं था।
घर पहुंचा तो देखा बग्गू जैसा बच्चा अपनी मां का इंतजार कर रहा था। उसकी मां ने अपनी साड़ी के पल्लू से मुझे निकाला और उस बच्चे के हाथ में दे दिया। मुझे देते हुए वह बोली- 'गुड्डू बेटा, जन्मदिन मुबारक हो।'
खुशी से गुड्डू अपनी मां के गले लग गया और गुड्डू ने मुझे खुशी-खुशी खा लिया। सच बोलूं दोस्तो, मुझे बहुत दुख हुआ था, जब गिन्नी मुझे कार मैं छोड़कर चली गई थी। लेकिन प्यारे से हाथों से बने मुझको किसी प्यार से खाने वाले की तलाश थी। दोस्तो, सही कहा गया है- 'दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम'।