राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिंता न करें। मैं सबको मार भगाऊंगा।
राजा बोला, 'नहीं, ऐसा मत करो। युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे।'
इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बना कर रहने लगा। वहां जीमूतवाहन की एक ऋषि के बेटे से दोस्ती हो गई।
एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मंदिर में गए तो दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली।
दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए। जब कन्या के पिता को मालूम हुआ तो उसने अपनी बेटी उसे ब्याह दी।
एक दिन की बात है कि जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढे़र दिखाई दिया।
पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत-से नाग आते हैं, जिन्हें गरुड़ खा लेता है। यह ढे़र उन्हीं की हड्डियों का है। उसे देखकर जीमूतवाहन आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाने पर उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। पास गया तो देखा कि एक बुढ़िया रो रही है।
जीमूतवाहन क्यों गया शंखचूड की जगह...
कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ नाग की बारी है। उसे गरुड़ आकर खा जाएगा।
जीमूतवाहन ने कहा, 'मां, तुम चिंता न करो, मैं उसकी जगह चला जाऊंगा।'
बुढ़िया ने बहुत समझाया, पर वह न माना।
राजकुमारी क्यों हुई मूर्च्छित....
इसके बाद गरुड़ आया और उसे चोंच में पकड़ कर उड़ा ले गया। संयोग से राजकुमार का बाजूबंद गिर पड़ा, जिस पर राजा का नाम खुदा था। उस पर खून लगा था।
राजकुमारी ने उसे देखा। वह मूर्च्छित हो गई।
होश आने पर उसने राजा और रानी को सब हाल सुनाया।
वे बड़े दुखी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकले। तभी उन्हें शंखचूड़ मिला। उसने गरुड़ को पुकार कर कहा, 'हे गरुड़! तू इसे छोड़ दे। बारी तो मेरी थी।'
गरुड़ ने राजकुमार से पूछा, 'तू अपनी जान क्यों दे रहा है?' उसने कहा, 'उत्तम पुरुष को हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।'
यह सुनकर गरुड़ बहुत खुश हुआ, उसने राजकुमार से वर मांगने को कहा। जीमूतवाहन ने अनुरोध किया कि सभी सांपों को जिंदा कर दो। गरुड़ ने ऐसा ही किया। फिर उसने कहा, 'तुझे अपना राज्य भी मिल जाएगा।'
नगर लौटे राजा को फिर मिली गद्दी...
इसके बाद वे लोग अपने नगर को लौट आए। लोगों ने राजा को फिर गद्दी पर बिठा दिया।
इतना कहकर वेताल बोला, 'हे राजन् यह बताओ, इसमें सबसे बड़ा काम किसने किया?'
वेताल ने किया सवाल - सबसे बड़ा काम किसका?
राजा ने कहा 'शंखचूड़ ने?' वेताल ने पूछा, 'कैसे?'
राजा बोला, 'जीमूतवाहन जाति का क्षत्री था। प्राण देने का उसे अभ्यास था। लेकिन बड़ा काम तो शंखचूड़ ने किया, जो अभ्यास न होते हुए भी जीमूतवाहन को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया।'
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे लाया तो उसने फिर एक सत्रहवीं कहानी सुनाई।
( समाप्त)