अपने जाले में क्यों नहीं फँसती मकड़ी?

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मकड़ी पेट में विशेष प्रकार की ग्रंथियों से निकलने वाले द्रव से जाला बनता है। मकड़ी के शरीर के पिछले हिस्से में स्पिनेरेट नाम का अंग होता है जिसकी मदद से इस द्रव को पेट से बाहर निकालती है। हवा के संपर्क में आने पर पेट से बाहर निकाला जाने वाला द्रव सूखकर तंतु जैसा बन जाता है। इस तरह के तंतुओं से ही मकड़ी का जाला बनता है। मकड़ी के जाले में दो तरह के तंतु होते हैं। एक सूखा जिससे जाले की फ्रेम बनती है और दूसरा जिनसे बीच की रेखाएँ बनती हैं उसे स्पोक्स कहते हैं।

स्पोक्स चिपचिपा होता है। जाले में चिपचिपे तंतुओं में ही चिपककर शिकार फँस जाता है और छूट नहीं पाता है। जब शिकार फँस जाता है तो मकड़ी सूखे धागों पर चलती हुई शिकार तक पहुँचती है और इसलिए वह जाले में नहीं उलझती। वैसे मकड़ी के शरीर पर तेल की एक विशेष परत भी चढ़ी होती है जिससे उसके जाले में फँसने का सवाल ही नहीं उठता।
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