चूहे ने जीती इंसानों की चूहा दौड़

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... और मजे की बात तो यह कि वह चूहा दौड़ में शामिल भी नहीं हुआ था। उसका नाम था रेमी और वह रहता था फ्रांस के फैशनेबल शहर पेरिस में। साथ में चूहों का पूरा कुनबा था, परंतु रेमी सबसे अलग था। उसका शौक था बढ़िया खाना पकाना। उसका आदर्श था पेरिस का सबसे प्रसिद्ध शेफ (रसोइया) अगस्ते गुस्तो।

गुस्तो की खाना बनाने की पुस्तक पढ़कर रेमी ने एक से एक लजीज व्यंजन बनाना सीखा। उसका चूहा समाज था कि रसोई बनाने को बेकार काम मानकर उसे खाने में से चूहों का जहर सूँघकर खोजने के काम में जोते रखना चाहता था।

जो क्रिएटिव लोग होते हैं, भले ही वे चूहे या परिंदे क्यों न हो, ग्यारह से पाँच की नौकरी पसंद नहीं करते। या फिर सिर्फ रुपया कमाने के धंधे में नहीं उलझे रहते। जैसे जोनाथन लिविंग्स्टन सीगल (समुद्री पक्षी) था जिसने पानी पर तैरते कूड़े पर चोंच मारते रहने के बजाए सुंदर तरीके से उड़ने के अभ्यास में अपनी जीवन खपा दिया।
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रेमी भी चुहलबाजी में पड़ने के बजाए एक से एक स्वादिष्ट व्यंजन बनाता चला गया। एक दिन उसका साबका पड़ा एक खड़ूस रिपोर्टर से जो एक पत्रिका में खाने-पीने पर समीक्षाएँ लिखता है। वह रेमी के दोस्त को चुनौती देता है कि तू मुझे क्या खिलाएगा...।

रेमी रॅट उसे खिलाता है एक देहाती पकवान रॅट-ए-तुई जिसमें पनीर नहीं, मेवे-मक्खन नहीं बल्कि स्वाद है। रॅट-ए-तुई को सिर्फ एक खडूस रिपोर्टर ने ही नहीं पूरे अमेरिका ने पसंद किया है। इसलिए वॉल्ट डिज्नी की फिल्म रॅट-ए-तुई को अकादमी अवार्ड, गोल्डन ग्लोब और ग्रैमी अवार्ड के बाद अब एनीमेशन फिल्म की श्रेणी का ऑस्कर पुरस्कार भी मिला है। परीक्षाओं के बाद इसका स्वाद चखेंगे हम लोग।

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