लेकिन 104 वर्ष पूर्व का तुंगुस्का विस्फोट स्मरणीय है कि 104 वर्ष पूर्व 1908 में रूसी साइबेरिया के तुंगुस्का नदी-क्षेत्र में एक ऐसा आकाशीय पिंड पृथ्वी से टकराया था, जो 2012 DA14 जितना ही बड़ा था। एक निर्जन जंगली क्षेत्र होने के कारण उस समय हुए धमाके से कुछ भेंड़ें वगैरह मरी थीं, जबकी 1600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में पेड़ आदि भूमिसात हो गए थे। लेकिन, उससे कोई क्रेटर (गड्ढा) नहीं बना था, क्योंकि करीब 10 किलोमीटर की ऊँचाई पर विस्फोट हो जाने से वह पिंड असंख्य टुकड़ों में बिखर गया था।
इस घटना के कंप्यूटर अनुकरणों (सिम्युलेशन) से पता चला है कि वह उल्कापिंड यदि 4 घंटे 47 मिनट बाद पृथ्वी पर गिरा होता, तो रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर पर गिरता और तब उससे जान-माल की भारी क्षति हुई होती। अनुमान तो यह भी हैं कि वही उल्कापिंड यदि न्यू यॉर्क पर गिरा होता, तब तो हाहाकार ही मच जाता। 32 लाख लोग मारे जाते और इससे भी कहीं अधिक घायल होते।
किसी उल्का या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने पर होने वाले नाश-विनाश की व्यापकता उसके आकार-प्रकार के साथ-साथ इस पर भी निर्भर करती है कि वह कितना ठोस या भुरभुरा था, कब और कहाँ गिरा-- किसी घने बसे इलाके में, निर्जन रेगिस्तान में, जंगल-पहाड़ के बीच या सागर-महासागर में। 2012 DA14 के बारे में अनुमान है कि वह एक ठोस चट्टान के समान है, जबकि तुंगुस्का में गिरा पिंड भुरभुरे क़िस्म का था।
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इस बीच यह बात तय लगती है कि एपोफ़िस 13 अप्रैल 2029 को तो पृथ्वी से टकराएगा नहीं, बल्कि उससे 30 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर से सर्राता हुआ निकल जाएगा। उस समय उसे नंगी आँखों से भी देखा जा सकेगा। टकराने की संभावना 50 हज़ार में से केवल एक के बराबर है। आशा तो यह भी की जा रही है कि उस पर नज़र रखते हुए अगले तीन वर्षों में शायद यह बात पक्की हो जाए कि पृथ्वी और एपोफ़िस के बीच अगले कई सौ वर्षों तक किसी टक्कर की संभावमा नहीं है।
2036
में पृथ्वी से भिडंत संभव है : फ़िलहाल, खगोलविद इस संभावना से इन्कार नहीं करते कि एपोफ़िस 2036 में जब एक बार फिर पृथ्वी के निकट आएगा, तब हो सकता है कि दोनों की भिड़ंत भी हो। इस भिड़ंत की संभावना को टालने की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं।
100
मीटर तक ऊँची त्सुनामी लहरें : एपोफ़िस का भार पृथ्वी पर दो करोड़ टन के बराबर होगा। इतनी भारी चीज़ यदि पृथ्वी से टकराती है, तो विनाशलीला तो मचेगी ही। कंप्यूटर गणनाओं के अनुसार, यदि वह सूखी ज़मीन पर गिरेगा, तो वहाँ एक किलोमीटर व्यास का गहरा गड्ढा बना देगा। यदि समुद्र में गिरेगा तो 100 मीटर तक ऊँची त्सुनामी लहरें पैदा करेगा। वैज्ञानिक आशा कर रहे हैं कि 9 जनवरी तक के राडार मापनों से जनवरी के अंत तक पता चल जाना चाहिये कि 2036 में वह सचमुच पृथ्वी से टकरा सकता है या नहीं।
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