जैव विविधता से लबरेज: बंगाल की खाड़ी से सटे भारत के पूर्वी राज्य उड़ीसा के पूर्वी तट पर 1100 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैली चिल्का या चिलिका झील पुरी, खुर्दा और गंजाम जिलों के अंतर्गत आती है। यह झील दुनियाभर के पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है। यहाँ मछली पकड़ने, नौका विहार तथा बर्ड वॉचिंग के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यह झील इतनी खूबसूरत है कि इसे हनीमूनर्स पैराडाइज भी कहा जाता है।
इसकी एक बड़ी विशेषता है कि वर्षाकाल में इस झील का पानी अपेक्षाकृत मीठा हो जाता है पर बाकि समय खारा होता है। इस झील में बड़कुदा, हनीमून, कालीजय, कंतपंथ, कृष्णप्रसादर, नलबाण, नुवापाड़ा तथा सानकुद जैसे अनेक छोटे-छोटे द्वीप हैं। महानदी तथा कई धाराओं द्वारा सिंचित इस झील को समुद्री ज्वार पानी से भर देते हैं। खारे-मीठे, उथले और गहरे पानी के संयोजन से यहाँ जलीय प्राणियों और पक्षियों की भरमार है। इस झील की यही खूबियाँ इसे जैव विविधता से भरपूर बनाती हैं।
चिल्का झील जैव विविधता से कितनी समृद्ध है इसका एक उदाहरण है यहाँ पाई जाने वाली दुर्लभ इरावदी प्रजाति की डॉल्फिन मछली, इसके अलावा भी यहाँ ऐसी अनेक प्रजाति की मछलियाँ मिलती है जिन पर न केवल यहाँ आने वाले पक्षी बल्कि आस-पास के गाँवो के लगभग 2 लाख मछुआरे भी निर्भर हैं।
चिल्का पर चिंतन: चिल्का पर चिंता कोई नई नहीं है, मीठे और नमकीन पानी के मिश्रण से बनी इस झील को वर्ष 1993 में खतरे में पड़ी आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल कर लिया गया था जिसके बाद इस झील को सहेजने की कई सफल कोशिशों के बाद वर्ष 2001 में इसे फिर खतरे की सूची से हटा लिया गया था। पर अब फिर से यह चिंता सताने लगी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ते मानवीय दबाव की वजह से शायद आने वाले कुछ सालों में एक बार फिर यह झील खतरे की सूची में न आ जाए।