सावधान, एक बड़ा क्षुद्रग्रह आ रहा है पास

राम यादव
WD
GOV
एक बड़ा क्षुद्रग्रह हमारी पृथ्वी के पास से जल्द ही गुज़रने वाला है। नाम है "2005 YU55" लेकिन, डरने की कोई बात नहीं है। वह पृथ्वी से टकरायेगा नहीं। लगभग उसी दूरी पर से गुज़र जायेगा, जिस दूरी पर चंद्रमा पृथ्वी के फेरे लगाया करता है।

लगभग 400 मीटर व्यास वाली किसी चट्टान जैसा यह क्षुद्रग्रह मंगलवार, 8 नवंबर की रात, पृथ्वी के पास से गुज़रेगा। भारतीय समय के अनुसार मंगलवार की रात 7 बज कर 58 मिनट पर वह पृथ्वी के सबसे निकट, यानी हम से केवल 3 24 600 किलोमीटर दूर होगा। उस समय उसकी गति 50 हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। चंद्रमा भी पृथ्वी से लगभग इतनी ही दूरी पर रहता है। 1976 के बाद से किसी इतने बड़े क्षुद्रग्रह की यह सबसे अधिक निकटता है।

कोई बाल बांका नहीं होगा : लेकिन, अमेरिका और जर्मनी के अंतरिक्ष अधिकरणों नासा और डी एल आर ने आश्वस्त किया है कि "2005 YU55" से पृथ्वी पर कोई बाल बाँका नहीं होगा। उनका कहना है कि ''इस क्षुद्रग्रह का सौर-परिक्रमापथ दूरददर्शी अवलोकनों और राडार मापनों से अच्छी तरह पता है। ऐसा कोई ख़तरा नहीं है कि वह पृथ्वी से या चंद्रमा से टकरा सकता है।''

खगोलविद, बल्कि, इस बात से खुश हैं कि वे पृथ्वी से "2005 YU55" की अपूर्व निकटता का लाभ उठा कर अपने दूरदर्शी उस पर इस तरह केंद्रित कर सकते हैं कि उसकी बनावटी बारीक़ियों को और अच्छी तरह जान सकें। जब वह पृथ्वी के अधिकतम निकट होगा, तब उसकी ऊपरी सतह का इतना सटीक नक्शा बनाना संभव होगा कि उस में केवल दो मीटर के बराबर भूलचूक की गुंजाइश रह जाये।

सौरमंडल जितना पुराना : पिछले अवलोकनों से केवल यही जाना जाता है कि वह क़रीब 400 मीटर व्यास वाला काफ़ी कुछ किसी विशाल गु्ब्बारे जैसा एक पिंड है। वह अधिकतर कार्बनधारी यौगिकों का बना है और लकड़ी की अपेक्षा कहीं भारी है। उसे उतना ही पुराना होना चाहिये, जितना पुराना हमारा सौरमंडल है। वैज्ञानिक जानना चाहेंगे कि क्या उसके पेट में ऐसे खनिज पदार्थ भी हो सकते हैं, जो हमारे लाभ के हों और हमें संकेत दे सकें कि भविष्य में हमें किन क्षुद्रग्रहों पर अधिक ध्यान देना चाहिये।

अपने अपेक्षाकृत बड़े आकार के बावजूद "2005 YU55" छोटे-मोटे शौकिया टेलिस्कोपों की पकड़ में नहीं आयेगा। वह इतना भारी भी नहीं है कि अपने गुरुत्वाकर्षण बल से पृथ्वी पर एक बाल भी हिला सके, ज्वार-भाटे जौसा कोई प्रभाव पैदा कर सके या पृथ्वी की भूगर्भीय प्लेटों में कोई विवर्तनिक (टेक्टोनिक) हलचल जगा सके। उस जैसे सैकड़ों, शायद हज़ारों ऐसे पिंड हैं, जो 4अरब 60 करोड़ वर्ष पूर्व सौरमंडल के जन्म के समय बने थे। तभी से, पृथ्वी की ही तरह, वे भी सूर्य के चक्कर लगा रहे हैं और कभी-कभी पृथ्वी के बहुत निकट भी आ जाते हैं।

शायद पृथ्वी से कभी न टकरायेः खगोलविदों का अनुमान है कि "2005 YU55" हज़ारों वर्षों से पृथ्वी की झलक पाने के लिए आया करता है। सूर्य की परिक्रमा करते हुए वह मंगल और शुक्रग्रह की परिक्रमा कक्षाओं के बीच से भी गुज़रता है। उसके परिक्रमापथ के आधार पर की गई गणनाओं के अनुसार अगले 100 वर्षों में पृथ्वी के साथ उसके टकराने की कोई संभावना नहीं है। हो सकता है, दूर भविष्य में भी वह पृथ्वी से कभी नहीं टकराए। पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हमारे संचार व अन्य प्रकार के उपग्रहों पर भी उसका कोई असर होने की संभावना नहीं देखी जा रही है।

अतीत की टक्करें : मंगलवार 8 नवंबर को पृथ्वी के पास से गुजर रहे "2005 YU55" से तो फिलहाल कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन पृथ्वी अपने इतिहास में उस जैसे, या उससे भी बड़े, कई क्षुद्रगहों के साथ अनेक टक्करें झेल चुकी है। उदाहरण के लिए, कोई डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व क़रीब एक किलोमीटर बड़ा ऐसा ही कोई क्षुद्रग्रह जर्मनी में श्वैबिश अल्ब नामक इलाके में गिरा था। उससे वहाँ जो क्रेटर (गड्ढा) बना है, उसे आज ''नौएर्डलिंगर रीस'' के नाम से जाना जाता है। इसी तरह, समझा जाता है कि साढ़े 6 करोड़ साल पहले कोई 10 किलोमीटर बड़ा एक क्षुद्रग्रह मेक्सिको के आज के यूकातान प्रायद्वीप पर गिरा था। इससे पृथ्वी पर की उस समय की जलवायु में इतनी भारी उथलपुथल मची थी कि बहुत संभव है कि उसी के कारण उस समय की डायनॉसर प्रजातियों का भी सदा-सर्वदा के लिए अंत हो गया।

दिसंबर 2005 में पहली बार देखा गया YU55, हालांकि, यूकातान या श्वैबिश अल्ब वाले क्षुद्रग्रहों से कहीं छोटा है, तब भी इतना खोटा ज़रूर है कि यदि वह पृथ्वी से टकराता है, तो 1945 में हिरोशिमा या नागासाकी पर गिराये गये अमेरिकी परमाणु बमों से कई हज़ार गुना शक्तिशाली बम जैसी विध्वंस लीला मचा सकता है। ऐसी कोई टक्कर इतनी शक्तिशाली होगी कि उससे भूकंप पैदा हो सकते हैं और समुद्रों में त्सुनामी लहरें भी उठ सकती हैं।

एक सदी पूर्व की तुंगुस्का पहेलीः आधुनिक इतिहास में 30 जून, 1908 को, रूसी साइबेरिया की तुंगुस्का नदी वाले वीरान इलाके में ऐसी ही एक घटना हुई थी, जो वर्षों तक एक अबूझ पहेली बनी रही। उस दिन वहाँ 70 हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से कोई क्षुद्रग्रह या उल्का पिंड ज़मीन से टकराया था। टक्कर से हुए विस्फोट से जो प्रघात तरंगें फैली थीं, उनमें हिरोशिमा वाले कई सौ परमाणु बमों जितनी शक्ति छिपी थी, जबकि वह पिंड मुश्किल से केवल 50 मीटर ही बड़ा रहा होना चाहिये।

अब भी अनेक अज्ञात पिंडः अंतरिक्ष में अब भी हज़ारों, शायद लाखों ऐसे पिंड हो सकते हैं, जो पृथ्वी के निकट आ सकते हैं, पर जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इसीलिए अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उनकी टोह लेने, उन पर नज़र रखने और उनकी सूची बनाने में लगे हैं। पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में इस तरह के अब तक कुल 8321 ऐसे क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध किये जा चुके हैं, जिनमें से 830 ऐसे हैं, जो कम से कम एक किलोमीटर बड़े हैं। वैज्ञानिकों की गणनाओं के अनुसार, कम से कम 30 मीटर बड़े पिंड ही पृथ्वी पर कोई नुकसान पैदा कर सकते हैं। सिद्धांततः हर कुछ सौ वर्षों पर ऐसी कोई टक्कर हो सकती है।

28 अक्टूबर को भी एक पिंड गुज़राः अभी गत 28 अक्टूबर को ही, 10 से 20 मीटर बड़ा ऐसा ही एक पिंड, एक लाख किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से पृथ्वी से केवल डेढ़ लाख किलोमीटर की दूरी पर से सर्राता हुआ निकल गया। यह दूरी पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी के आधे के बराबर है। वैसे, वह यदि पृथ्वी पर गिरता भी, तो हमारे वायुमंडल की घनी परतों में हवा के साथ घर्षण के कारण ज़मीन छूने पहले ही शायद पूरी तरह भस्म हो जाता। हमें उसका कोई पता तक नहीं चलता। बड़े आकार वाले पिंड भी हवा के साथ घर्षण से जलने लगेंगे, लेकिन उन का आकार यदि 30 मीटर से अधिक हुआ, तो उनका कुछ हिस्सा फिरभी ज़मीन तक पहुँच सकता है या ज़मीन के पास आकाश में उसका विस्फोट हो जाने पर ज़ोरदार प्रघात तरंगें पैदा हो सकती हैं।

खगोलविदों की गणनाओं के अनुसार "2005 YU55" जैसे अपेक्षाकृत बड़े क्षुद्रग्रह भी औसतन हर 30 वर्षों पर पृथ्वी के पास से गुज़रते हैं। इस तरह का अगला क्षुद्रग्रह, जिसका वैज्ञानिकों को पता है, 27 साल बाद, 2028 में पृथ्वी के पास से गुज़रेगा।

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