आपने पितृ दोष या ऋण सुना होगा लेकिन मातृ ऋण होता है सबसे बड़ा

अनिरुद्ध जोशी
लाल किताब के अनुसार कुण्डली में कई प्रकार के ऋण होते हैं। जैसे पितृ ऋण, जालिनाम ऋण, कुदरती ऋण, अजन्मा ऋण आदि। उन्हीं में से एक ऋण होता है मातृ ऋण। लाल किताब के अनुसार सबसे अजीब बात यह कि यदि आपकी कुंडली में इनमें से कोई सा भी ऋण है तो अधिकतर रिश्तेदारों में भी वह ऋण उपस्थित होगा। इसका मतलब यह कि पूरा परिवार ही उस ऋण से प्रभावित होता है। आपने देखा होगा कि घर परिवार के एक सदस्य को पितृदोष है तो लगभग सभी की कुंडली में यह दोष मिलता है। इसीलिए लाल किताब अनुसार तो पूरे परिवार को ही इसका निदान करना चाहिए तभी इससे मुक्ति मिलती है। आओ मातृ ऋण के बारे में जानते हैं।
 
 
मातृ ऋण- 
स्थिति- लाल किताब के अनुसार जब केतु कुण्डली के चौथे भाव में हो तो कुण्डली को मातृ ऋण से प्रभावित माना जाता है। लाल किताब के अनुसार, चौथे घर का स्वामी चंद्रमा है। अगर चंद्रमा के घर में, केतु आ जाए, तो चौथा भाव दूषित होने से, चंद्रमा को ग्रहण लगाता है। ऐसे में व्यक्ति पर मातृ ऋण चढ़ता है।
 
 
कारण- कुंडली के इस इस तथ्य के पीछे कारण यह हो सकता है कि आपके पूर्वजों ने किसी मां को उपेक्षित किया हो या उसके साथ अत्याचार किया हो अथवा बच्चे के जन्म के बाद मां को उसके बच्चे से दूर रखा हो, या हो सकता है कि किसी मां की उदासी को अनदेखा किया हो।
 
 
लक्षण- मातृ ऋण से जातक कर्ज में दब जाता है। ऐसे में घर की शांति भंग हो जाती है। व्यक्ति सुख-शांति से भोजन न कर पाए। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।


इसके अलावा पास के कुंए या नदी की पूजा करने के बजाय उसे गंदगी और कचरा डालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा होगा तो भी मातृ ऋण प्रारंभ हो जाता है या लग जाता है। माता के प्रति लापरवाह रहना। उनके सुख दु:ख की परवाह न करना। संतान के जन्म के बाद माता को बेघर करने से भी मात्र ऋण लगता है। माता की किसी भी तरह से किसी तरह की मदद न मिलना। जमा धन, फिजूल के काम में खर्च हो। 
 
 
निवारण-
1. माता या माता समान महिला की सेवा करें।
2. वृद्धाश्रम में जाकर वृद्ध महिलाओं को खीर खिलाएं।
3. बहते पानी या नदी में एक चांदी का सिक्का बहाएं।
4. नित्य दुर्गा माता के मंदिर में जाएं और उनकी पूजा करें। माता को चुनरी चढ़ाएं।
5. अपनी बेटी या बेटी समान लड़की की सेवा करें। कहते हैं कि पुत्री के जन्म से माता का ऋण कुछ हद तक कम हो जाता है।
6. अपने सभी रक्त (सगे) संबंधियों से बराबर-बराबर मात्रा में चांदी लेकर किसी नदी में बहाएं। चांदी नहीं बहा सकते हैं तो चावल बहाएं। यह काम एक ही दिन करना है।
 

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