कब टूटेगा तेल का तिलिस्म

Webdunia
शनिवार, 22 नवंबर 2008 (16:33 IST)
- नृपेन्द्र गुप्त ा

तेल का खेल बड़ा निराला है। आम तो आम खास भी इस खेल में कई मौकों पर अनाड़ी नजर आते हैं। तेल के दाम कब बढ़ाए जाएँ और कब इसके दाम कम हों यह भी अब जनचर्चा का विषय हो गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 147 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 47 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं, पर सरकार ने मानो अपनी आँखें मूँद ली हैं।

चर्चा का विषय बना तेल : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल किस भाव मिल रहा है और तेल कंपनियों के नफे-नुकसान और सरकार के कर मिलाकर जनता को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ रही है, इसकी चर्चा मंत्रालय से चौपालों तक पहुँच चुकी है।

घटे दाम तो दिखे आस : महँगाई दर भले एक अंक में आ गई हो पर आम आदमी को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। रसोई गैस के दामों ने जहाँ घर का बजट बिगाड़ा हुआ है, वहीं पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से आम आदमी का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। तेल के दाम कम होने से आम आदमी को महँगाई कम होने का अहसास तेजी से होगा।

पाक में घटे तेल के दाम : आर्थिक मंदी से टूट चुके पाकिस्तान ने भी अपनी जनता को महँगाई से राहत देते हुए पेट्रोल के दाम 13 प्रतिशत तक कम कर दिए हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब संकटग्रस्त पड़ोसी देश तेल के दाम घटा सकता है तो मजबूत अर्थव्यवस्था वाला भारत क्यों नहीं?

दिया था आश्वासन : जब कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ रहे थे तो उस समय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम कम होने पर सरकार भी दाम घटा देगी। अक्टूबर में सरकार ने फिर कहा था कि क्रूड के दाम 67 डॉलर प्रति बैरल तक आ जाने पर पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस आदि पेट्रोलियम उत्पादों के दामों में कटौती की बात कही थी।

नौकरी छूटी, पर खर्चे वही : आर्थिक मंदी का कहर खासतौर पर युवा वर्ग पर पड़ा है। एक ओर वह नौकरी छूटने से परेशान है तो दूसरी तरफ रोजमर्रा के खर्च कम करने के लिए संघर्ष कर रहा है। बाइक, मोबाइल और शॉपिंग पर जमकर खर्च करने वाले इस वर्ग पर यह समय बहुत भारी पड़ रहा है। तेल के दाम घटने से इस वर्ग को भी राहत मिलने की उम्मीद हैं।

तेल बिगाड़ सकता है खेल : पहले भी एक बार चुनावों में प्याज ने सत्तारूढ़ राजग को रूला दिया था। प्याज पर चली लहर में जनता ने सत्तारूढ़ दल को दिन में तारे दिखा दिए। एक बार फिर इतिहास दोहरा सकता है। इस बार प्याज की जगह तेल ले लेगा, निशाने पर होगा राजग की जगह संप्रग। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के बयान मानो मतदाताओं के सब्र का इम्तिहान ले रहे हैं।

आज जब सरकार वैश्विक आर्थिक मंदी के इस दौर में मजबूत होने का दम भरती है तो उसे इस मजबूती को ठोस तरह से प्रदर्शित भी करना होगा। तेल के दाम कम न होना मजबूती नहीं बैकफुट पर होने का संकेत है। रुपए की स्थिति कमजोर होने की आड़ लेकर सरकार इससे बच नहीं सकती।

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