मोदी की राह में मंदी का भूत, शेयर बाजार से लेकर आम आदमी की जेब तक असर
अगर उपभोक्ता मांग को बढ़ाने और लोगों की आय को बेहतर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो मंदी का यह तूफान और भयावह रूप ले सकता है।
वाहन बिक्री में भारी गिरावट: पिछले साल फरवरी 2024 में भारत में 21 लाख वाहन बिके थे, लेकिन इस साल फरवरी 2025 में यह संख्या घटकर केवल 17 लाख रह गई। इसका मतलब है कि वाहन बिक्री में 17% की कमी आई है। यह एक बड़ा संकेत है कि लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो रही है। हालांकि, सरकार का दावा है कि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 6.2% की दर से बढ़ रही है। सवाल यह उठता है कि अगर अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, तो वाहन बिक्री जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में इतनी बड़ी गिरावट क्यों?
सोने के ऋण में अभूतपूर्व वृद्धि: सोने के आभूषणों को गिरवी रखकर ऋण लेने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। पिछले 5 सालों में इस तरह के ऋण में 300% की वृद्धि हुई है। साल 2024 तक यह आंकड़ा पहली बार 1 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। फरवरी 2025 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, सोने के ऋण में 71.3% की बढ़ोतरी हुई है। दूसरी ओर, आवास ऋण और वाहन ऋण जैसे अन्य क्षेत्रों में बैंक ऋण की गति धीमी पड़ गई है। यह दर्शाता है कि लोग संकट के समय में अपने सोने का उपयोग कर रहे हैं, जो आर्थिक तंगी का स्पष्ट संकेत है।
खास बात यह है कि सिबिल और नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सोने के ऋण महिलाओं को दिए गए कुल ऋण का 40% हिस्सा बनाते हैं। पिछले 5 सालों में अपने गहने गिरवी रखने वाली महिलाओं की संख्या में 22% से ज्यादा की वृद्धि हुई है। यह स्थिति महिलाओं पर बढ़ते आर्थिक दबाव को दर्शाती है।
शेयर बाजार का कमजोर प्रदर्शन: भारतीय शेयर बाजार भी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर रहा है। इसका मुख्य कारण उपभोक्ता मांग में कमी है। जब लोग सामान और सेवाओं पर खर्च नहीं करते, तो कंपनियों की आय प्रभावित होती है, और इसका असर शेयर बाजार पर पड़ता है।
उपभोक्ता मांग क्यों कमजोर है? : उपभोक्ता मांग में कमी की वजह साफ है- आम लोगों के पास खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? इसके तीन बड़े कारण हैं:
वेतन में वृद्धि नहीं: लोगों की आय बढ़ नहीं रही है, जिससे उनकी क्रय शक्ति स्थिर या कम हो रही है।
उच्च महंगाई: जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे लोग अपने सीमित पैसे को बुनियादी जरूरतों पर ही खर्च कर रहे हैं।
अप्रत्यक्ष करों का बोझ: जीएसटी, पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क जैसे अप्रत्यक्ष कर आम लोगों की आय को कम कर रहे हैं। ये कर सभी पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे उनकी आय कितनी भी हो।
सरकार अप्रत्यक्ष करों पर क्यों निर्भर है? : सरकार को अपने खर्चों के लिए अधिक राजस्व चाहिए, जैसे कि बुनियादी ढांचा, कल्याण योजनाएं और अन्य परियोजनाएं। लेकिन इसके लिए वे अमीरों पर प्रत्यक्ष कर (इनकम टैक्स) बढ़ाने से बच रही हैं। इसके बजाय, वे अप्रत्यक्ष करों पर जोर दे रही हैं, जो गरीब और मध्यम वर्ग पर ज्यादा असर डालते हैं। इससे आम लोगों की जेब पर दबाव बढ़ रहा है, और वे अपनी बचत या सोने जैसे संसाधनों का इस्तेमाल करने को मजबूर हो रहे हैं।
ट्रम्प का टैरिफ हमला नई चुनौती : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं। हाल ही में राष्ट्रपति ट्रम्प ने कांग्रेस के संयुक्त सत्र में दिए भाषण में भारत का जिक्र करते हुए व्यापारिक नीति में बदलाव की घोषणा की। ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका अब विदेशी आयात पर जवाबी टैरिफ लागू करेगा।
उन्होंने भारत, चीन और यूरोपीय संघ पर आरोप लगाया कि ये देश अमेरिकी सामानों, खासकर ऑटोमोबाइल्स पर अत्यधिक टैरिफ लगाकर अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 2 अप्रैल से लागू होने वाले इन जवाबी टैरिफ का मकसद अमेरिकी निर्यातकों के लिए समान प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाना है। ट्रम्प ने भारत के 100% शुल्क का उल्लेख करते हुए कहा, "जो टैरिफ वे हम पर लगाते हैं, वही हम उन पर लगाएंगे।"
विशेषज्ञों का मानना है कि इसका भारत पर बड़ा असर हो सकता है, क्योंकि भारत अमेरिकी आयातों पर औसत से अधिक टैरिफ लगाता है। उदाहरण के लिए, भारत अमेरिकी कारों पर 100% टैरिफ लगाता है। पिछले एक दशक में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 35 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो भारत की जीडीपी का लगभग 1% है। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ से भारत की जीडीपी विकास दर पर 0.1 से 0.3% तक का नकारात्मक असर पड़ सकता है। अगर अमेरिका व्यापक वैश्विक टैरिफ लागू करता है, तो यह प्रभाव 0.6% तक हो सकता है। यह भारत की पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटका साबित हो सकता है।
मंदी का प्रेत सता रहा है: ये सभी आंकड़े और तथ्य एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हैं। वाहन बिक्री में गिरावट, सोने के ऋण में वृद्धि, शेयर बाजार का कमजोर प्रदर्शन और अब अमेरिकी टैरिफ की मार- ये सभी संकेत बताते हैं कि अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। सरकार भले ही जीडीपी वृद्धि के आंकड़े पेश करे, लेकिन आम लोगों की जिंदगी में यह सुधार नहीं दिख रहा।
ट्रम्प की नई नीति से निर्यात प्रभावित होने की आशंका है, जो भारत की आर्थिक मुश्किलों को और गहरा सकती है। अगर उपभोक्ता मांग को बढ़ाने और लोगों की आय को बेहतर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो मंदी का यह तूफान और भयावह रूप ले सकता है। यह स्थिति न केवल सरकार के लिए बल्कि हर भारतीय के लिए चिंता का विषय है। क्या यह केवल एक अस्थायी संकट है, या आने वाले दिन और कठिन होंगे? यह समय ही बताएगा।