इन कारणों से गिर रहा है रुपया...

Webdunia
बुधवार, 26 जून 2013 (10:30 IST)
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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी रुपए की कीमत लगातार कम हो रही है। रुपए की गिरती कीमत का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी हो रहा है।

दोनों ही मुद्राओं का प्रभाव घरेलू महंगाई पर भी पड़ता है। आइए जानते हैं कि भारतीय रुपया आखिर डॉलर के सामने कमजोर क्यों हो रहा है।

रुपए के अवमूल्यन का कारण : इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। कोई व्यक्ति कागज के लिफाफे बनाता है और कपड़ा बेचने वाले से उसके बदले में एक मीटर कपड़ा लेता है। बाद में कपड़े की क्वालिटी में गिरावट आने लगती है वह 100 लिफाफों के बदले 2 मीटर कपड़ा लेने लगता है। इससे यह समझा जा सकता है कि कपड़े का अवमूल्यन हो रहा है। ऐसा ही रुपए के साथ हो रहा है।

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आयात-निर्यात का प्रभाव रुपए पर पड़ता है। रुपए का अवमूल्यन अमेरिकी डॉलर पर ही होता है।

अमेरिका की वस्तु की तुलना भारतीय वस्तु की कीमत से होती है। जब किसी वस्तु का आयात-निर्यात होता है तो रुपए की कीमत घटती और बढ़ती है। इसे भी ऐसे समझा जा सकता है।

अगर 1990 में भारत में एक किलो गेहूं की कीमत 5 रुपए थी। यानी पांच रुपए में डॉलर मिलता था। अगर अमेरिका में गेहूं की कीमत एक डॉलर हो तो दोनों देशों में एक ही रकम से बराबर माल मिल रहा था। भारत में बढ़ती महंगाई ने गेहूं के दाम भी बढ़ा दिए हैं।

गेहूं की कीमत अब 13 रुपए प्रतिकिलो हो गई है, लेकिन अमेरिका में अब भी एक डॉलर में एक किलो गेहूं मिल रहा है। अब अगर एक डॉलर में 13 रुपए मिलें तो बात फिर बराबर हो जाएगी। तब एक डॉलर से दोनों देशों में एक किलो गेहूं खरीदा जा सकेगा।

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मुद्रा बाजार में डॉलर की आवक पर उसकी कीमत तय होती है। यदि बाजार में डॉलर की आवक ज्यादा हो तो डॉलर की कीमत कम होती है और डॉलर की आवक कम हो तो उसकी कीमत बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है।

डॉलर ने बिगाड़ी इन देशों की अर्थव्यवस्था : भारत में इस समय रुपया कमजोर होने से अर्थव्यवस्था डगमगाई हुई है। एक डॉलर की कीमत करीब 60 रुपए है।
इससे देश में हाहाकार मचा हुआ है। रुपए के अतिरिक्त दक्षिण अफ्रीका की रैड, ब्राजीलियन रियल, तुर्किश लिरा, रशियन रुबल भी गिरावट के दौर में हैं।

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रुपया गिरने से विदेश में पढ़ाई करना महंगा हो जाता है। भारत आयात की जाने वाली वस्तुएं भी महंगी होंगी। भारतीय पर्यटक जब विदेश घूमने जाएंगे तो उन्हें भी महंगाई की मार पड़ेगी। रुपए की गिरती कीमत का सीधा संबंध इन्फलेशन से होता है। आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ती है।

जब महंगाई बढ़ेगी तो इन्फलेशन रेट बढ़ेगा ही। ज्यादातर पेट्रोलियम पदार्थ आया‍त किया जाता है। इस स्थिति में पेट्रोलियम पदार्थों का आयात मूल्य बढ़ने से डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे और महंगाई और बढ़ेगी।

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दो वर्ष पहले भारत का शेयर बाजार मजबूत स्थिति में था। सेंसेक्स करीब 20000 पर था। विदेशी निवेशक भारतीय मार्केट में निवेश कर रहे थे, तब मुद्रा बाजार में डॉलर की आवक अधिक थी।

एक डॉलर की कीमत 40 से 50 रुपए के बीच थी। महंगाई तो पहले भी थी, अब ही क्यों महंगाई तो काफी दिनों से बढ़ रही है।

क्या कारण हैं कि रुपया पिछले दो सालों से ही रुपया कमजोर हो रहा है। महंगाई के कारण रुपया लगातार टूट रहा था, लेकिन फॉरेन इन्वेस्ट के कारण यह उठ भी रहा था।

दोनों प्रभाव एक-दूसरे को काट रहे थे, इसलिए 2002 से जुलाई 2011 तक रुपए की कीमत 40 से 50 रुपए प्रति डॉलर तक टिकी रही। (एजेंसियां)
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