यह सच है कि इस मुकाम तक पहुंचने में सचिन ने अद्भुत मेहनत व प्रतिभा दिखाई है, पर एक ऐसा भी वक्त आता है, जब वक्त व उम्र की मार आप पर पड़ने लगती है। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि 155 किलोमीटर प्रति घंटे की शोएब अख्तर, ब्रेटली व डेल स्टेन की गेंदबाजी को सहजता व बिना किसी हिचक के मामूली साबित करने वाले सचिन के शरीर को दो बार ब्रेसनन की 134 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की गेंदों ने ही हिला दिया। कहीं यह इस महान बल्लेबाज के उतार के वक्त की शुरुआत न हो। गेंदबाजों पर जिस दादागिरी के साथ वे खेलते थे, वह अब दिखाई नहीं दे रहा है।
पर सचिन के प्रति ऋणी राष्ट्र को अब भविष्य की राह भी टटोलनी है। सचिन ने भारतीय क्रिकेट व आम भारतीय के स्वाभिमान को जगाया है। कीर्तिमान उनका पीछा करते रहे। तुलनाएं फीकी पड़ने लगीं। सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ में केवल डॉन ब्रेडमैन को उनके समतुल्य माना जाने लगा है। ऐसी हस्ती की छत्रछाया में कई नायक प्रशंसनीय प्रदर्शन करते रहने के बावजूद दब जाते हैं। राहुल द्रविड़ को संकटमोचक तो कहा जाता है, पर सितारा पद देने में लोग कंजूसी बरतते हैं। वीरेंद्र सहवाग भी जब चमके तो ऐसे कि बाकी सब मंद दिखाई दिए। पर उनमें प्रदर्शन की निरंतरता की कमी रही। किसी न किसी दिन तो भारत को सचिन-मोह से उबरना ही होगा।